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22 Nov 2024 · 1 min read

प्रेम दोहे

ढाई आखर प्रेम के , पढ़ मन उपजे प्रेम ।
ओम कहां अब ढूंढता , सबकी चाहे क्षेम ।।

ओम प्रीत की डोर से , बँध जाएं सब लोग ।
ऐसा सुख नहीं जगत में , जनमानस ले भोग ।।

मीठी वाणी बोल के , सबको लेय लुभाय ।
रे मन तू ऐसा बने , कर ले प्रेम सुभाय ।।

जात-पाँत को छाँड़ि के , मन में सबन बसाय ।
प्रेम लगन ऐसी लगे , बैर दूर हो जाय ।।

लोक रंजन धर्म बड़ा , करें सभी से हेत ।
जनमानस में पैठकर , कर जायें परहेत ।।

प्रेम पगा सो जो जना , पाये सबका प्रेम ।
जाए जिस भी ठौर में , मिले उसी से प्रेम ।।

दिल से दिल जब भी मिले , पाये बहुत सुकून ।
ओम खिल जाय प्रेम पुष्प , बाढ़े प्रीति प्रशून ।।

ओमप्रकाश भारती ओम्
बालाघाट मध्य प्रदेश

Language: Hindi
38 Views
Books from ओमप्रकाश भारती *ओम्*
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