ग़ज़ल…
आपसे मिल ज़िंदगी ये खिल गई है फूल बनकर
उड़ गई है पीर दिल की यार अब तो धूल बनकर//1
आँधियों मेंं जो सहारा दे उसे ही दोस्त मानो
तुम चलो बेख़ौफ़ होकर फिर उसी अनुकूल बनकर//2
जिस नज़र में भेद होगा चाह कर भी चाह रोये
बू कभी मिलती नहीं उससे उठा जो शूल बनकर//3
जो भला कर हँस चलेगा लाभ उसको हो हमेशा
लाभ उल्टा हो भला ही शब्द समझो कूल बनकर//4
राज़ जिसको ज़िंदगी का मिल गया हो ख़ुश रहेगा
उलटिए बस राज़ को होगा ज़रा ग़म मूल बनकर//5
लौट आओ प्यार से तुम झूम गाओ गीत दिल के
हर ख़ुशी तुमको मिलेगी ज़िंदगी में तूल बनकर//6
कर्म करके चाँद जैसे चाँदनी का नूर पाओ
राह हर आसान ‘प्रीतम’ सच कहूँ मैं रूल बनकर//7
आर. एस. ‘प्रीतम’