वो बन के हवा गुजरते है रूबरू हो कर

वो बन के हवा गुजरते है रूबरू हो कर
कहे दिल ठहरे वो पल दो पल ही रूबरू हो कर
देखे मुस्कुरा के ओर कुछ ना कहे रूबरू हो कर
भला अब हाल दिल कोई पूछे रूबरू हो कर
होती है बडी उलझन रूबरू हो कर
तुम से कहे या चुप रहे रूबरू हो कर
सोचते रहते हैं अक्सर ये भी हम रूबरू हो कर
तमन्नाओं का शहर है कभी देखिएगा रूबरू हो कर
जो हो इजाजत तो थामिएगा हाथ रूबरू हो कर
बस यही आखिरी ख्वाहिश है राह मे
तुम चलो साथ बन के हमराज जिन्दगी भर
ओर जब हो आखिर पल जिन्दगी का
हाथों में हो हाथ अलविदा हो जाऊं मैं
रूबरू हो कर ……
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)