अकल्पनीय धोखा

सुशील आज जब ऑफिस के रवाना हुआ तो कुछ अनमना सा चिंतित था ।
उसे अपने आने वाले खर्चो की चिंता सता रही थी।
उसके बेटे विवेक ने 12वीं क्लास की परीक्षा प्रारंभ हो चुकी थी , उसे इस साल किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला कराना था।
वह उसके भविष्य के बारे सोच रहा था ,
विवेक एक होनहार, बुद्धिमान, मेहनती पढ़ाई में अव्वल बालक था।
उसकी रुचि पढ़ाई के अलावा संगीत एवं खेलकूद में भी थी।
वह बढ़ चढ़कर स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेता था और उसने कई पुरस्कार गायन प्रतियोगिता एवं वाद विवाद प्रतियोगिता में प्राप्त किए थे।
इसके अलावा उसने अपनी स्कूल की क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व बतौर कप्तान के रूप में क्षेत्रीय टूर्नामेंटों में किया था।
वह स्वभाव से मृदभाषी मिलनसार व्यक्तित्व से संपन्न था उसे सभी चाहते थे।
सुशील शहर के पोस्ट ऑफिस में बतौर क्लर्क
कार्यरत् था। उसके वेतन से उसके परिवार में उसकी पत्नी नलिनी ,10 वर्षीय बेटी संपदा , विवेक एवं सुशील को मिलाकर चार सदस्यों का महंगाई में मुश्किल से गुजारा संभव हो पाता था।
उसकी वृद्ध माँ शांति अपने बड़े बेटे प्रकाश के साथ गाँव में रहती थी। प्रकाश की गाँव में एक छोटी किराना की दुकान थी।
जायदाद के नाम पर एक पुश्तैनी मकान एवं 8 बीघा जमीन थी । घर के सदस्यों में उसकी 5 वर्षीय बेटी प्रज्ञा एवं पत्नी आशा थी।
सुशील के पिता का देहांत एक सड़क दुर्घटना कई वर्ष पूर्व हो चुका था ,जब सुशीलऔर प्रकाश बाल्यावस्था में थे।
सुशील सोच रहा था , विवेक के कालेज में एडमिशन के लिये धन की व्यवस्था करनी होगी।
विवेक की रूचि इंजनियरिंग में थी।
व्यावसायिक कालेज में प्रवेश के लिए कम से कम 4-5 लाख की व्यवस्था करनी होगी।
चूँकि विवेक प्रतिभाशाली बालक था ,वह अपनी परीक्षा में अधिकतम अंक प्राप्त कर सफल होगा एवं प्रवेश परीक्षा में भी अच्छा रैंक प्राप्त करेगा , इस विषय में सुशील आश्वस्त था।
सुशील अगर विभागीय ऋण भी लेता तो उसे उसके प्रोविडेंट फंड से अधिकतम 1.5 से 2 लाख तक का ही ऋण मिलेगा।
वह प्रकाश से भी इस विषय में व्यवस्था की अपेक्षा नही कर सकता क्योंकि , अभी माँ की बीमारी के इलाज में उसको काफी खर्च उठाना पड़ा था।
आफिस में भी वह इसी सोच में डूबा हुआ था, कि उसके सहकर्मी मुकेश ने पूछा क्या बात है ?
आज आप कुछ बदले- बदले से लग रहे हो !
अधिक कुरदने पर सुशील ने अपनी चिंता का कारण बताया , इस पर मुकेश ने कहा कोई चिंता करने की जरूरत नही , वह उसकी व्यवस्था करा सकता है।
वह एक व्यक्ति को जानता है ,जो जरूरतमंद लोगों को कम ब्याज और आसान किस्तों में लोन उपलब्ध कराता है। उससे मिलकर बात कर लेते हैं।
सुशील को उसका सुझाव पसंद आया उसने तय किया कि आने वाले रविवार की छुट्टी में उससे जाकर मिलते हैं।
मुकेश ने कहा मैं उसको फोन करके टाइम तय कर लूँगा और आपको आपके घर से ले लूँगा दोनों साथ चलेंगें।
रविवार को मुकेश ने सुशील को उसके घर से लिया और दोनो उस व्यक्ति से मिलने उसके घर पहुंचे।
उसका घर एक आलीशान महलनुमा घर था।
घर के बाहर चौकीदार से अंदर खबर करने के बाद अनुमति मिलने पर मुकेश और सुशील घर में प्रवेश किया
अंदर बहुत बड़े ड्राइंगरुम में एक सोफे एक अधेड़ व्यक्ति विराजमान था , उसने उठकर मुकेश और सुनील का स्वागत कर बैठने का आग्रह किया।
आने का मंतव्य बता चर्चो करने पर उसने बताया कि उनकी एक परोपकारी संस्था है , जिसका कार्य जरूरत मंदों को आसान किश्तों पर ऋण देना है।
जिसमें ब्याज की दर भी काफी कम होती है ,जिससे कर्जदार पर बोझ ना पड़े ,और वह आसानी से ऋण चुका सके।
उसकी बातों से सुशील काफी प्रभावित हुआ।
कर्ज की शर्ते पूछने पर उसने कहा आपको केवल किश्तों की राशि के बिना दिनांक डालेआपके द्वारा हस्ताक्षरित चेक प्रदान करने पड़ेंगे , जिससे हम समय-समय पर आपके खाते से किश्तों की रकम प्राप्त कर लेंगे।
यदि किसी कारणवश आपकी खाते में किश्त की पूर्ति के अभाव में चेक बाउंस होता है , तो आपको उसकी एवज में नगद राशि का भुगतान करना पड़ेगा।
सुशील को ऋण प्रदान करने की प्रक्रिया सरल और सुलभ लगी और उसने उस व्यक्ति की संस्था से ऋण लेने का निश्चय कर लिया।
उस व्यक्ति ने सुशील से कहा कि कल मैं अपना आदमी आपके पास भेज दूँगा , जो ऋण की औपचारिक पूर्ण कर लेगा। दस्तावेजों के सत्यापन के पश्चात् , आपको 2 दिन में ऋण स्वीकृत कर दिया जाएगा।
निर्धारित समयानुसार उस व्यक्ति का एजेंट सुशील से मिला , उसने सुशील से ऋण आवेदन पत्र , एवं अन्य सत्यापन दास्तावेजों और ऋण की समान किश्तों के सुशील द्वारा हस्ताक्षरित बिना दिनांक के चेक ले लिए।
सुशील ने ₹ 4 लाख के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था।
उस व्यक्ति के वादे अनुसार 2 दिन में ₹4 लाख सुशील के खाते में जमा हो गये।
सुशील ने राहत की साँस ली , उसके दिमाग का बोझ उतर चुका था। उसने मुकेश को धन्यवाद दिया कि उसने उसकी समस्या का बहुत सरल तरीके समाधान कर दिया था।
विवेक की परीक्षा का परिणाम घोषित हो चुका था , उसने अधिकतम अंक लेकर मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
विवेक ने IIT की प्रवेश परीक्षा में भी सफल प्रथम दस परीक्षार्थियों में तीसरा स्थान प्राप्त किया।
उसका चयन IIT रूड़की में कमप्यूटर इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए हो गया।
सुशील बहुत खुश था कि उसने धनाभाव के कारण
अपने प्रतिभाशाली पुत्र के उज्जवल भविष्य के साथ.समझौता नही किया था।
विवेक ने पूरी लगन से अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाकर प्रथम सेमेस्टर परीक्षा प्रथम स्थान प्राप्तकर , मेरिट छात्रवृत्ति के लिये चयनित हुआ।
विवेक के प्रतिभाशाली होने से सुशील की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ गई थी।
ऋण की समान किश्तों की अदायगी नियमित रूप से उसके बैंक खाते से हो रही थी , तभी अचानक एक दिन सुशील को संस्था का नोटिस आया कि आपके ऋण खाते में ब्याज मिलाकर 3 लाख 29 हजार बकाया हैं , जिसका तुरंत भुगतान करें।
सुशील का माथा ठनका उसने सोचा कि उसके बैंक खाते से नियमित किश्तों का भुगतान हो रहा है , परन्तु यह गड़बड़ कैसी है , आखिर मेरा पैसा किसी गलत खाते में तो जमा नही हो रहा है ?
उसने यह चर्चा मुकेश से की , दोनों ने निश्चय किया कि वे उस ऋण संस्था के आफिस जाकर पूछताछ करते हैं।
संस्था के आफिस में पहुँचने वहाँ मैनेजर नही मिले पूछने पर बतलाया कि वसूली पर गए हैं।
केवल एक महिला क्लर्क आफिस में मौजूद थी।
उससे पूछताछ करने पर कोई संतोषजनक उत्तर नही मिला।
अतः सुशील और मुकेश ने सुशील के बैंक शाखा जाकर
जानकारी प्राप्त करने का निश्चय किया कि आखिरकार सुशील के खाते से रकम निकलकर किस खाते में जमा हुई है।
बैंक जाकर बैंक मैनेजर से बात करने उसने पूछा कि आपने हितग्राही का नाम चेक पर लिखा था या नही , इस पर सुशील ने कहा मैने तो समान किश्तों की राशि भरकर हस्ताक्षर करके चैक एजेंट को दिए थे। एजेंट ने कहा था कम्पनी के नाम की सील हम आफिस में लगा लेंगें ,आप खाली छोड़ दो।
इस पर मैनेजर ने कहा यहीं पर आपने गलती कर दी है , आपने चेक की रकम पर तो ध्यान दिया , परन्तु हितग्राही के नाम को एजेंट के भरोसे छोड़ दिया।
अक्सर ऐसा होता है कि हम सहृदय लगने वालों की बातों में आकर उन पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करने लगते हैं , और अनजाने में उनके शब्द- जाल म़े फंसकर धोखा खा जाते हैं।
मैनेजर ने कम्प्यूटर पर सुशील का खाता चेक किया और बतलाया कि आपकी केवल पाँच किस्तें ही संस्था के खाते में जमा हुईं हैं , और अन्य कई व्यक्तिगत खातों में किश्तों की रकम जमा हुई है।
आप इस विषय में संस्था को सूचना पत्र दें , उसके साथ आपके बैंक खाते के पासबुक की पूर्ण एन्ट्री करवा कर आपके द्वारा सत्यापित उसकी फोटो प्रतिलिपि संलग्न करें । जिसकी एक कापी आप बैंक रिकार्ड के लिए भेज सकते हैं। जिससे बैंक स्तर पर प्रकरण की विवेचना में मदद मिल सके।
यदि संस्था आपकी सूचना पर संज्ञान लेकर निर्धारित अवधि तक दोषी तत्वों के विरूद्व कार्रवाई नही करती है , तो आप संस्था के विरूद्ध धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कर न्याय की गुहार कर सकते हैं।
मैनेजर ने ये भी कहा ,कुछ संस्थाएं स्वयं इस प्रकार की धोखाधड़ी में लिप्त होतीं हैं , और हितग्राहियों से जबरन वसूली के हथकंडे , जैसे डराना ,धमकाना ,गुंडागर्दी , नकली पुलिस बनकर धमकाना , अपहरण इत्यादि।
इसलिए यह आवश्यक है कि आप अपने आपको कानूनी रूप से पहले सुरक्षित करें।
मैनेजर की सलाह पर सुशील ने समस्त बातों को वर्णित करते हुए , समस्त दस्तावेजों सहित एक सूचना पत्र संस्था को भेजकर , 7 दिन की अवधि के अन्दर संज्ञान लेकर स्पष्टीकरण करने का अनुरोध किया , अन्यथा संस्था के विरुद्ध प्रकरण दर्ज करने की चेतावनी दी।
सुशील के पत्र का सकारात्मक प्रभाव हुआ , और संस्था ने सुशील को पत्र लिखकर सूचित किया कि एजेंट ने संस्था को धोखे में रखकर विभिन्न व्यक्तिगत खातों में किश्तों की राशि जमा करके गबन किया है। उसके खिलाफ प्रकरण दर्ज कर कार्रवाई की जा रही है। आपके द्वारा प्रदत्त चेकों की रकम आपके ऋण खाते में समायोजित की जा चुकी है।
हमारे एजेंट के कुकृत्य से हुए आपके मानसिक कष्ट के लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं।
अतः पूर्ण सूझबूझ , धैर्य तथा बैंक मैनेजर के उचित मार्गदर्शन से सुशील इस प्रकार की धोखाधड़ी के
माया – जाल से सुरक्षित बच निकलने में सफल हुआ।
अंततोगत्वा कहानी का सार यह है कि किसी भी व्यक्ति पर विश्वास करने में पूर्ण सतर्कता का समावेश होना आवश्यक है, जिससे आप भविष्य में संभावित धोखाधड़ी से निरापद रह सकें।
आपके साथ हुए धोखे को अपने तक सीमित न रखते हुए, तनावग्रस्त हुए बिना , किसी प्रबुद्ध सलाहकार के परामर्श से समस्या का उचित समाधान खोजा जा सकता है ,
तथा त्रासदी से होने वाली हानि के प्रभाव को कम किया जा सकता है ,और संज्ञान लेकर भविष्य में इस प्रकार प्रपंचों से बचा जा सकता है।