ठुकरा के पैदाइश
दोस्तों,
एक ताजा रचना आपकी मुहब्बत की नज़र,,,!!
ठुकरा के पैदाइश
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ठुकरा के पैदाइश अपनी इंसान भाग गया,
सोचा सारे जहाँ ने प्रभू लगन में जाग गया।
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वो सिरफिरा खुद को खुदा समझ कर,सुनो,
दामन पे लगे दाग को जैसे कर बेदाग गया।
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रोते बिलखते छोड़ मात-पिता को खुदगर्ज़,
तन मन धोने दरिया संगम राज प्रयाग गया।
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चतुर चलाक समझ वो इतराने लगा है ऐसे,
समंद्र से जैसे चोंच भर मोती ले काग गया।
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ज़हरीले शब्द बाण चला कर ऐसे चल पड़ा,
जैसे अपनो को डस अस्तीन का नाग गया।
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होती है हर घर तूं तूं में में इतने में छोड गया
यूंही बसे घर में “जैदि” लगा जैसे आग गया।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”