अब वक्त भी बदलने लगा है

अब वक्त भी बदलने लगा है
वो किसी गैर का होने लगा है
सलाम दुआ तो दूर की बात है
वो देख के नज़रे फेरने लगा है
मेरा लिखा सुनाता था जो
वो गैर लिखा पड़ने लगा है
मैं तो आज भी याद करता हु
वो ना जाने क्यों मुझे भुलाने लगा है
नींद हराम करके मेरी
वो गैर की बाहों में सोने लगा है
पैगाम भेजने से डरता है
मेरे भेजे खत जलाने लगा है
जो कभी मेरा नसीब था
वो गैर का नसीब बन गया है