पंख तो मिले थे ,मगर उड़े नहीं,

पंख तो मिले थे ,मगर उड़े नहीं,
क्योंकि पैरों में बेड़ियां किसी उम्मीद की थीं ।
अब होश आया तो जाना हमने ,
हमने ही इस तकदीर से झूठी उम्मीद की थी ।
उड़ जाते हिम्मत करके तो शायद !
अपना मुकाम पा ही लेते ।
न भी मिलता गर पूरा आसमान ,
तो अपना छोटा सा आशियां तो बना ही लेते ।
मगर कमसे कम अपने वजूद ,अपनी आजादी ,
की तो रक्षा कर लेते ।
काश !!हम एक बार तो हिम्मत कर लेते ,
न जीते किसी झूठे दंभ में ,जो एक कोरी नाउम्मीदी थी ।