ग़ज़ल
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वो चेहरे पर आंचल गिराए हुए हैं ,
यूं शरमा के नज़रें झुकाए हुए हैं ।
जरा सी झलक देखने के लिए ही,
जमाने से पलके बिछाए हुए हैं।
तेरी सादगी दिल में घर पर गई ,
तुझे घर का मालिक बने हुए हैं।
अहा चांदनी से नही ये रातें ,
वो चेहरा से बादल हटाए हुए हैं।
बड़ा हौसला रखते हैं वो भी “नूरी”,
जो हंस के यूं ज़ख्म को छुपाए हुए है।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर