प्यासा कौआ

प्यासा कौआ!
गर्मी का दिन जेठ महीना ।
था कौवे को पानी पीना।
प्यासा कौआ तड़प रहा था ।
पानी को वह तरस रहा था ।
दिख्खे उसको कहीं न पानी।
फिर भी उसने हार न मानी।
थोड़ी उसने जोर लगाई।
अपनी और उड़ान बढ़ाई।
देखा उसने घड़ा कहीं पर।
सोंचा पानी मिले वहीं पर।
पहुँचा कौआ पर फैलाये।
घड़े पे बैठा डीठ गड़ाये।
पाया उसमें पानी कम था।
पहुँच चोंच से दूर परम था ।
कौए ने कुछ ठोकर मारी।
घड़ा हिला ना, घट था भारी।
फिर भी कौआ थका न हारा।
कांव-कांव कह फिर उड़ मारा।
पास घड़े के वह मँडराया ।
आस पास कुछ कंकड़ पाया ।
इक इक कंकड़ चोच दबाकर।
डाल घड़े में वह ला लाकर।
नीर सतह से ऊपर लाया।
प्यास मिटा कर अकल दिखाया।
-“प्यासा”