देखो! कहां राम है मेरा
“देखो !कहां राम है मेरा”
आर्तनाद कर रहा विश्व है,
जगती अंतर से चीत्कार रही।
भरत जनों तुम जाग्रत होओ,
धरती आज पुकार रही।।
जनमन से उठते हैं स्वर, देखो! कहां राम है मेरा।।।
राष्ट्र और संस्कृति के हित,
अर्पित जिसका जीवन है।
मंगल सकल विश्व के हित,
ऐसा जिसका चिंतन है।। समझो वहीं राम है मेरा।।।
रहकर भी इस धरती पर,
अक्षय जिसका मनोदय है।
मधुर अमित भावों से पुष्पित,
ऐसा जिसका परिचय है।। समझो वहीं राम है मेरा।।।
रमे सदा लोकरंजन हित,
अभ्युदय सकल प्रयोजन है।
मनस्वी रूप लिया है जिसने,
अनुशासन जिसका आयोजन है।। समझो वहीं राम है मेरा।।।
रस अमृत सा विश्व बंधुवह,
अरुण- करुणा- सागर है।
मकरंद भरा रूप अभिराम,
सकल शुभता गागर है।। समझो वहीं राम है मेरा।।।
शक्ति साधक युक्ति प्रणेता,
अखंड योग भक्ति धारक है।
समरसता का हृदय निकेत,
ज्ञान साधक सारक है।। समझो वहीं राम है मेरा।।।
नैनों में हर पल जिसके,
विश्व कल्याण का लक्ष्य सधा है।
हो सकल मानवता का हित,
ऐसा कर्मण सदा बदा है।। समझो वहीं राम है मेरा।।।
वह अनथक और अनवरत चलता,
परमशक्ति ही जिसका आश्रय है।
नित्य निरंतर इसी राजमार्ग पर,
भूमिपुत्र सा जिसका विग्रह है।। समझो वहीं राम है मेरा।।।
सदा ढूंढता रहा जिसे मैं। समझो वहीं राम है मेरा।।