आत्म वेदना
///आत्म वेदना///
आत्म वेदना का निस्सीम अंचल,
क्यों मुझे है घेर लेता।
असीम व्योम के नीरव फलक का,
पीन मुझे क्यों बेध देता।।
अचल व्यथा की वेदना को,
मैं तो नहीं पहचानती हूं।
और न उसकी शास्त्र सम्मत,
परिभाषा ही जानती हूं।।
तब मुझे क्यों कोई निराकार ,
उस वसन में डूबो देता।
भार पा उस नीरव व्यथा का,
मेरा वेदन विस्तार लेता।।
इस वेदना का मूक रव,
आ हृदय में विस्तार पाता ।
क्यों व्यथित प्रहरी बनकर,
मुझ में आत्म पीड़ा जगाता।।
मैं निर्मूल हो विस्तार पाती ,
असीम अंचल व्योम सी।
चिर वेदना को ही प्रेम समझ,
आनंद पाती मधुसोम सी।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)