छलकता नहीं है
गीतिका
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गरजता बहुत घन बरसता नहीं है।
कलश है भरा तो छलकता नहीं है।
बहुत कोशिशें की बताओ करें क्या,
मगर मन कहीं आज लगता नहीं है।
लिए जा रहा है कहां भाग्य अपना,
जहां स्नेह का सिंधु बहता नहीं है।
नहीं खिल रहा पुष्प मुरझा रहा जब।
हवा बिन समय भी महकता नहीं है,
जताते नहीं प्यार खामोशियों में,
अधर पर कहीं कुछ ठहरता नहीं है।
तमस है घना कुछ नहीं दृष्टिगोचर।
दिया स्नेह क्यों आज जलता नहीं है।
लिया ठान है जब सदा साथ चलना।
कभी मन पथिक का बदलता नहीं है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य