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6 Jan 2025 · 5 min read

अमर उजाला हिंदी दैनिक में हमारे दो व्यंग्य लेख क्रमशः 22-7-1

अमर उजाला हिंदी दैनिक में हमारे दो व्यंग्य लेख क्रमशः 22-7-1990 तथा दिनांक 1-10-89 को प्रकाशित हुए थे। इन पर क्रमशः₹50 तथा ₹75 रुपए पारिश्रमिक मिला था।
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व्यंग्य संख्या एक
कर-कमल (व्यंग्य)
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प्रकाशन तिथि: अमर उजाला 22-7-1990
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अमर उजाला में “कर-कमल” नामक लेख व्यंग्य लेख 22- 7 -1990 को प्रकाशित हुआ था । इस पर ₹50 पारिश्रमिक अमर उजाला द्वारा दिया गया था ।
लेखक : रवि प्रकाश ,
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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कर-कमल

हाथों की तारीफ में जो शब्द इस्तेमाल किया
जाता है, कोमल हैं, गुलाबी हैं, मतवाले
हैं, दिलवाले हैं। प्रेमिका के हाथों को कर-कमल कहना चाहिए, जिसने आपका दिल छीना हो उसके हाथों में हाथ डालकर कर-कमल कहने में खूबसूरती है। कविता में कर-कमल अच्छा लगेगा कि विश्वामित्र ने उमंग में भरकर पकड़ा मेनका का
कर-कमल। यूं फूल हजारों हैं मगर करों की
किस्मत में कमल होना ही लिखा है। उन्हें
कर- गेंदा नहीं कहा जा सकता। किसी ने किसी को यह कहते नहीं सुना होगा कि किसी मैदा की लोई-सी सुन्दरी को किसी ने कहा हो कि प्रिय! अपने कर-चमेली से हमें अंगूठी पहनाओ।
कमल यद्यपि भारतीय जनता पार्टी का चुनाव-चिन्ह बन गया है और गुलाब हालाँकि जवाहर लाल नेहरू को प्रिय रहा है, तो भी कांग्रेसी बहुतायत से कर-कमल का प्रयोग कर रहे हैं । बल्कि कहना चाहिए कि कांग्रेसियों के हाथ क्योंकि वे सत्ता में हैं- इसलिए जरूरत से ज्यादा कर-कमल हो रहे हैं।
कर-कमलों के बिना काम नहीं चलता।
बिना इनके उद्घाटन ,समापन, विमोचन,
समर्पण, अर्पण नहीं निबट पाता। नेता प्रायः
अपने कर-कमल लिए घूमते रहते हैं। दिन भर हाथापाई की, शाम को संगीत-संध्या का उद्घाटन करने के लिए कर-कमल साथ लेकर पहुंच गये। नेताओं के हाथों को कर-कमल कहते आपको कैसा लगता है? कमल जैसा साफ-सुथरा ,बेदाग, चिकना, मनोहारी फूल, मोटी-मोटी मूंछो वाले खुरदुरे नेताओं के हाथों में पड़कर कर-कमलों में
बदलना ही क्या शेष रह गया था ? यह तो ऐसा ही है कि गेंडे से जो किसी समारोह में पुरस्कार-वितरण कराया जाये और शिष्टाचारवश कह दिया जाए कि यह पुरस्कार गेंडा जी के कर-कमलों से दिया जा रहा है।
अरे! कर कमल की पदावली में जो
कोमलता है, उसका तो ख्याल करना चाहिए। किसी कोमलांगना के हाथ से इस्तेमाल कर कोई काम करवाया जाये और उसमें कर-कमलों का प्रयोग किया जाए तो आनंद आता है। कर-कमल सुनकर जो मोहक चित्र बनता है, उसे नेताओं की मोटी, थुलथुल ,हाथी-सी बाहें बिल्कुल बिगाड़
देती हैं। पता चला कि नाम ले रहे हैं कर-कमल और हाथ मोटे-मोटे हैं और खादी के कुर्ते की बाँह से बाहर निकल कर आ रहे हैं।
कर-कमल माने कम से कम नेलपालिश लगे हाथ । कुछ गुलाबीपन, कुछ चिकनाहट, थोड़ी गर्माहट, मुलायमियत जो टपक-टपक पड़ रही हो। गुलाबी फीता काटकर उद्घाटन अगर कर-कमलों से ही किसी को कराना है, तो कम से कम हाथों का ध्यान तो करना चाहिए।
कार्ड छपवाते समय इतना विचार तो
करना ही चाहिए कि जिसके हाथों को कर-कमलबताया जाए, उसके हाथों के बारे में चार लोगों से मिलकर राय बना लेनी चाहिए कि भाईयों! कालू बाबू के हाथों को कर-कमल लिखवाने में आपकी क्या राय है ? जिन्हें हाथों में कैंची पकड़कर फोटो
खिंचाने का शौक है ,वह तो अपने हाथो को
कर-कमल कहेंगे, मगर सोचना तो अगले को है कि उन्हें क्या कहें। क्या दौर आया कि जिसका हाथ एक बार खादी के कुर्ते में घुस गया समझो परमानेंट कर कमल हो गया।
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अमर उजाला में प्रकाशित हमारा दूसरा व्यंग्य। शीर्षक है, “चोरी के बाद”
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हमारा यह व्यंग्य अमर उजाला में
1 -10 – 89 को प्रकाशित हुआ था । ₹75 पारिश्रमिक के मिले थे।
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व्यंग्य
चोरी के बाद
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दोष तो उसका है जिसके चोरी हुई है । उसी को पुलिस पकडेगी। यह भी है कि पकड़ में सबसे पहले वही आदमी आता है ,जिसके घर पर चोरी हुई है। जो थाने में रपट लिखाने गया, पुलिस ने घेर लिया और बैठा रहा। क्यों भाई साहब ! आप घर में इतना सामान रखते ही क्यों हैं कि वह चोरी हो जाये। सामान कम रखिये ताकि चोरी से बचा जा सके। या यह कि अब जबकि सामान कुछ बचा ही नहीं और इस तरह आप चोरी से पूर्णतः सुरक्षित हैं, जाकर चैन से सोइये। लोग नहीं मानते और जाकर थानेदार को जगाते हैं कि हमारे चोरी हो गयी है।’
कितने शर्म की बात है कि लोगों के घर चोरी हो जाती है और वह सोते रहते हैं। उस पर सुबह-सुबह पुलिस की नींद खराब करते हैं। मैं तो पूछता हूं कि आप क्या कर रहे थे उस समय जब चोरी हो रही थी। मतलब यह कि कहां थे। घर में थे, तो किस कमरे में। कपड़े क्या – क्या पहन कर सोये थे, कमरे की बिजली जल रही थी कि नहीं। रात में पानी पीने या पेशाब करने उठे कि नहीं। चोर आपको नहीं दिखा, मगर क्यों? सब बातों के जवाब सोच कर दीजिये क्या वाकई चोरी हुई थी, याद कीजिये,कहीं आप सामान
कहीं और तो नहीं भूल गये। आपका शक किस पर है? हमारा शक तो पहले आप पर ही है; आपके घर चोरी हो गयी और आप नहीं जगे , संदेह तो होगा ही । खैर,
आपके भाई कितने हैं ? उन्हें बुलाइए, उनसे पूछताछ होगी। रिश्तेदारों पर भी शक हो ही रहा है। आपके मिलने वाले पिछले एक साल में कितने आये, उनकी एक लिस्ट बना कर दीजिये। हम एक महीने के अन्दर घर की तलाशी जरूर लेंगे। नौकरों के तो बाप को भी पुलिस नहीं बख्शेगी। जब थाने में हंटर पड़ेंगे तो उगल जायेंगे। पुलिस ने न जाने कितने निरपराध थानों में मार मार कर लहूलुहान किये हैं । यह नौकर तो चीज क्या हैं?

खैर छोड़िये। ठंडा पिलाया। फिर चर्चा होगी तब तक आप यही बैठिये। आप दकान –
दफ्तर जाने का विचार तो कम से कम एक महीने तक छोड़ ही दीजिये। आपसे रोज सुबह दोपहर शाम सिपाही चोरी के विषय पर चर्चा करने और ठंडा पीने आया करेंगे। चोरी की चर्चा पलिस का प्रिय विषय है। यह पलिस के लिए तात्विक चर्चा का विषय है जैसे कोर्स की किताब पढ़ी या प्रोफेसर का लेक्चर सुना, या घर बैठे नोट्स तैयार कर लिये, वैसे ही यह एक्शन का नहीं रिएक्शन का विषय है।
मानना पड़ेगा कि आप तो बड़े मूर्ख निकले कि अपने घर चोरी करा दी, यार, खुद तो मकान ठीक से रखते नहीं, दोष चोरों को देते हैं। जब दीवार नीची थी तो चोर तो छलांग लगा आते ही। दीवार जब कमजोर थी तो चोर उसे तोड़ कर अन्दर कैसे नहीं घुसते? जमीन पोली थी इस लिये सुरंग बन गयी, माल रखा था तो चोरी हो गया। अलमारी के ताले खुल सकने योग्य क्यों थे कि खुल गये और चोरी हो सकी? गर्ज यह कि आप कैसे निकम्मे, जाहिल और लापरवाह हैं कि आपके घर चोरी हो गयी।
फिर भी पुलिस आपके प्रति साँत्वना प्रकट करती है। बड़े अफसोस की बात है कि चोर आपको बेवकूफ और उल्लू बना गये खूब गधे बने आप। खैर अब थाने चलिये, या ऐसा है कि यहां से ४० कि.मी. दूर कुछ माल जो निश्चय ही आपका नहीं होगा, पर पकड़ा गया है। आप उसकी शिनाख्त करने चलिये। दुकान दफ्तर मत जाइये। चोरों की तलाश, चोरी के माल की तलाश में ढूँढिये ,थाने के चुक्कर काटिये पूलिस कोशिश कर रही है, विश्वास रखिये यही करेगी।
भाई साहब, आप तो आये- दिन ऐसे सिर पर चढ़े आ रहे हैं, जैसे अकेले आपके ही घर पर पहली बार चोरी हुई हो? शहर में और भी तो हजारों हैं, जिनके घर चोरी हुई और उन्होंने पुलिस को नमस्कार करके घर पर बैठना ही अन्त में बेहतर समझा। आखिर चोर भी इंसान है और पुलिस भी इंसान है। फिर, इंसानी भाईचारा भी कोई चीज है कि नहीं।
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लेखक रवि प्रकाश बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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