पुष्प का यौवन

नव किसलय पाति में
सदा विहँसता रहता हूँ
यौवन की दहलीज पर
सुगंधों से भर जाता हूँ
सुमधुर खशबू पहचान
हवा बिखेर ले चलता है
तितली भ्रमर मधुरानी जो
पराग मधु से मधुआलय में
आनंदित जीवन जीता है
उषा सुन्दरी तारों की घट
पनघट पे छोड़ डुबोता है
सूर्य संध्या रक्तिम आभा
स्वर्गिक नजराना देता हूँ
हँसता और हँसाता रहता
साथ साथ झूमते व गाते
प्रकृति प्रदत आपदा का
मिल जुल सामना करते
चिड़ियों की मस्त चहक
चाँद की चाँदनी सी तन
नव पुलक पुलकित मन
बसंत उत्सव मनाने लगते
परिवर्तन है प्रकृति नियम
प्रौढ़ अवस्था को पाते
जग प्राणी निष्ठुर क्यों ?
दया करुणा व प्रेम भाव
जागृत क्यों नहीं इनके
मेरे से सीख लेना तो दूर
जो माली सच्चा रक्षक है
आज भक्षक बन बैठा है
सीने सूई चुभो चुभोकर
सौभाग्य प्यार हार गूँथता है
पर मेरा हाल नहीं पूछता है
अंगों को काँट छाँट टोकरी
भर दारुण दुःख दे जाता है
जन्म मृत्यु सत्य है ! प्राणी
मेरी मरण शोक कौन मनाता
कविवर माखनलाल चतुर्वेदी
की वाणी से मेरी है विनती !
“मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ में देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक ” ।
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टी .पी . तरुण