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5 Jan 2025 · 1 min read

कुण्डलिया

कुण्डलिया

कच्ची राहें गाँव की, कहती मन की बात ।
काली सड़कें दे रहीं, अनबोले आघात ।
अनबोले आघात, खेत अब लगते सूने ।
कभी – कभी झंकार, कान को लगती छूने ।
कुछ भी समझो भ्रात, बात मैं बोलूँ सच्ची ।
सच्चा करती प्यार ,गाँव की राहें कच्ची ।

सुशील सरना /5-1-25

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