कुण्डलिया
कुण्डलिया
कच्ची राहें गाँव की, कहती मन की बात ।
काली सड़कें दे रहीं, अनबोले आघात ।
अनबोले आघात, खेत अब लगते सूने ।
कभी – कभी झंकार, कान को लगती छूने ।
कुछ भी समझो भ्रात, बात मैं बोलूँ सच्ची ।
सच्चा करती प्यार ,गाँव की राहें कच्ची ।
सुशील सरना /5-1-25