दोहा पंचक. . . . उल्फत
दोहा पंचक. . . . उल्फत
अश्कों से लबरेज है, उल्फत की तहरीर ।
आँसू आहें हिचकियाँ, इसकी है तासीर ।।
हर पन्ने से प्यार का, उठने लगा यकीन ।
टूटे दिल की किर्चियाँ, होती बड़ी महीन ।।
उल्फत है संसार में, धोखे का बाजार ।
कसमें वादों की यहाँ, किसको है दरकार ।।
लहरों से मत पूछिए, उस कश्ती का हाल ।
टूट गई तूफान में, जिस कश्ती की पाल ।।
उल्फत में रुसवाइयाँ,हासिल हुई जनाब ।
मिला दर्द का चश्म को, अश्कों भरा खिताब ।।
सुशील सरना / 5-1-25