मुसम्मम इरादा कीजिए
अरमानों को यूँ सीने में द़फनाकर
ग़र्दिश-ए-हालात पे,न रोया कीजिए
बस मंजिल पर निगाहें टिकाकर
कुछ मुसम्मम इरादा कीजिए
चश्में को आंखों पर उल्टा रखकर
निशाँ हथेली न निहारा कीजिए
रंज-ओ-ग़म को दिल में सजाकर
हाल अपना न छिपाया कीजिए
तमन्नाओं की कसक दिल में रखकर
यूँ निस्बत न जताया कीजिए
कुछ हसीन यादों का सहारा लेकर
बेवजह मुस्कराया कीजिए
नज़्म की खूंटी पर बस टांगे रखकर
यूँ ही न गुनगुनाया कीजिए
अपनी जमीं को हरगिज कभी भी
अपने दिल से न भुलाया कीजिए
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०४/०१/२०२५
पौष, शुक्ल पक्ष,पंचमी ,शनिवार
विक्रम संवत २०८१
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