गोपियों का विरह– प्रेम गीत
विभेद दें।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
मैं अपना यौवन देता हूँ !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
पाक दामन मैंने महबूब का थामा है जब से।
जब बगावत से हासिल नहीं कुछ हुआ !
ठीक है चंदन बनें, महका करें,
मैं भटकता ही रहा दश्त ए शनासाई में
हे ब्रह्माचारिणी जग की शक्ति
कोई शुहरत का मेरी है, कोई धन का वारिस
चाहे जितना भी रहे, छिलका सख्त कठोर
कोई होटल की बिखरी ओस में भींग रहा है
सदविचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कितनी उम्मीद है लोगों की हमसे,
ख़ैर कुछ और दिन लगेंगे तुमसे कुछ कहने को,