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15 Feb 2024 · 1 min read

21 उम्र ढ़ल गई

उम्र ढ़ल गई

धीरे-धीरे उम्र ढ़ल गई,
यह जिन्दगी ना जाने…
कितने किस्सों में बंट गई।
सोच का हर अंश…
वक़्त के साथ संवर गया,
चेहरे पर झुर्रियों की लिखावट…
कहानी सी बन गई।
गमों के छाऐ थे …
कभी गहरे बादल,
अब खुशियों की परत …
उन्हें निगल गई।
जो देखे थे कभी…
इन आँखों ने सपने,
उनकी संपूर्णता की चमक…
इन आँखों में बस गई।
सजाया है जिस बगिया को…
‘मधु’ मशक्कत से,
प्रभु कृपा से अब….
हरपल महक रही।

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Books from Dr .Shweta sood 'Madhu'
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