“वो आवाज़ तुम्हारी थी”
कभी-कभी हम अपने भीतर ऐसी गहरी खामोशी का सामना करते हैं, जो शब्दों से परे होती है, ये खामोशी हमारे मन की गहरी दरारों में बैठी होती है, जिसे हम हर रोज़ महसूस करते हैं, लेकिन कभी शब्दों में नहीं कह पाते है, आज जब मैं दिन के समय अपनी किताब के बचे हुए पन्नों को लिखते हुए तुम्हारे ख्यालों में खो गया था, तो अचानक एक कॉल ने मुझे वर्तमान से कुछ पल के लिए अतीत में ले जाकर खड़ा कर दिया, वो कॉल, वो आवाज़, मेरी धड़कनों को फिर से ज़िंदा कर गई,
वो पल, जब मैंने फोन उठाया और “हैलो” कहा, तो मुझे इस आवाज़ से एक अजीब सा डर महसूस हुआ, जैसे कोई अनकहा ग़म, कोई लंबी छुपी हुई याद मुझसे फिर से जुड़ने की कोशिश कर रही हो, एक धड़कन जो रोक दी गई थी, फिर से तेज़ हो गई, और मुझे लगा जैसे उस आवाज़ में मेरी ही कहानी छिपी हुई है, आवाज़ की गहराई में छुपा डर और ग़म, उन पलों का एक हिस्सा था, जो शायद मैं कभी खुद से भी छुपा चुका था, जब वो आवाज़ मुझसे पूछ रही थी, “क्या सुरभि से बात कर सकती हूँ?” तो मुझे एहसास हुआ कि ये वही आवाज़ है, जिसे कभी मैंने अपनी जिंदगी का हिस्सा माना था, लेकिन अब वह केवल एक याद बनकर रह गई है,
मुझे याद आया, कि वो आवाज़ शायद अब मेरी जिंदगी के किसी हिस्से में किसी भी रूप में शामिल नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी वह मेरे दिल के किसी कोने में ज़िंदा है, ये वही आवाज़ थी, जो एक वक़्त मेरे साथ होती थी, और अब ये मुझे सिर्फ एक खालीपन का अहसास दिला रही थी, जैसे वो मेरे दिल में बसी हुई हो, लेकिन मेरे पास उसे पूरी तरह से अपनी ज़िंदगी में लाने का कोई रास्ता ही नहीं, मैंने रॉन्ग नंबर कहा, क्योंकि मैं जानता था कि वो आवाज़ अब मेरे लिए नहीं है, वो आवाज़ और उस आवाज़ का हिस्सा भी अब मेरी दुनिया का हिस्सा नहीं बन सकता, हालांकि वो मेरे भीतर कभी ना खत्म होने वाली यादें छोड़ गई है,
कभी-कभी हम अपनी खामोशी के बीच इतने खो जाते हैं कि हमें अपने जज़्बातों को भी पहचानने में मुश्किल होती है, हम हर दिन अपनी अंदरूनी आवाज़ को सुनने की कोशिश करते हैं, लेकिन डर और संकोच की वजह से हम अपनी सच्चाई को सामने नहीं ला पाते, मैंने भी उस पल में वही किया, जो हम अक्सर करते हैं “अपने जज़्बातों का गला घोंटना” मैंने चाहा की उस आवाज़ को फिर से सुनूं, उसे पकड़ लूं, लेकिन फिर महसूस हुआ कि वह ख्वाहिश अब सिर्फ एक ख्वाब रह गई है,
यह खामोशी, यह दिल के अंदर पिघलते हुए जज़्बात, यही मेरी सच्चाई है, जब हम किसी से बिछड़ते हैं, तो हम अक्सर यही सोचते हैं कि वह हमारे पास वापस आ सकता हैं, हम उसी तरह से फिर से उन पलों को जी सकते हैं, लेकिन सच्चाई यही है की वक़्त कभी हमें उस मौके का दुबारा सामना नहीं करने देता, और यही शायद सबसे बड़ा दर्द है, अपने अंदर की उस आवाज़ को पहचान पाना, लेकिन उसे अपनी दुनिया का हिस्सा न बना पाना,
मैंने हमेशा अपने जज़्बातों को छुपाया, अपनी बातों को दिल तक ही सीमित रखा, कभी नहीं कहा, कभी नहीं बताया, क्योंकि मुझे लगता था कि इन भावनाओं को बाहर लाना उन्हें और अधिक तोड़ देगा, और जब वो कॉल आई, तो वह मेरे अंदर की तन्हाई का हिस्सा बन गई, एक ऐसी तन्हाई जो खुद से प्यार करने और अपने दर्द को स्वीकार करने में अक्षम थी,
यह शायद हम सभी का सच है, हम अपनी कहानी को खुद ही लिखते हैं, और जब कहानी अधूरी रह जाती है, तो वह हमें अंदर से कहीं तो तोड़ देती है, फिर भी, हम उस अधूरेपन को अपने दिल में छुपाकर जीते हैं, क्योंकि हम डरते हैं कि कहीं यह दर्द पूरी तरह बाहर न आ जाए, लेकिन अंत में, यही दर्द हमें अपने असल सच से मिलाता है, और हमें यह समझने का मौका देता है कि हम जो कुछ भी हैं, वो सिर्फ हमारी अपनी कहानी का हिस्सा हैं, चाहे वह अधूरी ही क्यों न हो, हाँ मैं जनता हूँ की वो तुम्हारी आवाज़ थी मगर समझ नहीं पा रहा हूँ क्या तुम भी मेरी आवाज़ सुनना चाहती थी, क्या आज भी मेरा नंबर तुम्हें याद है या आज भी मेरा नंबर तुम्हारे फ़ोन में है, ये सवालों से थोड़ा मैं घिर सा गया हूँ,
खैर अब इन सवालों का कोई मतलब नहीं, मगर हाँ इस जाते हुए साल में तुम्हारी आवाज़ सुनना मेरी आखिरी ख्वाहिश थी, जो पूरी हुई लेकिन अब मैं जानता हूँ कि मुझे अपनी पूरी कहानी को बिना किसी कटी हुई याद के साथ स्वीकार करना होगा।
“लोहित टम्टा”