ग़ज़ल
मुहब्बत के सफर में
इश्क़ की डगर मे
उसकी नजरों के भंवर में
हो सके तो फ़ना हो जा
पीर दिल की भुलाकर
सांसों से साँसें मिलाकर
खुद को ग़म मे डुबा कर
हो सके तो फ़ना हो जा
रातें तन्हाइयों मे बिताकर
ना चाहते हुए भी मुस्कराकर
आंखों को आंसुओं मे भिगा कर
हो सके तो फ़ना हो जा
गीत आशिकी के गुनगुना कर
चंद लम्हे संग बिताकर
दिल के सिंहासन पर उसको बिठाकर
हो सके तो फ़ना हो जा
मुहब्बत के सफर में
इश्क़ की डगर मे
उसकी नजरों के भंवर में
हो सके तो फ़ना हो जा
अनिल कुमार गुप्ता अंजुम