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17 Dec 2024 · 1 min read

आह्वान

मन कुछ उदास है , हर चेहरे पर भी अवसाद है ,
विभीषिका के फिर लौट आने के समाचार का प्रचार है,

अमानवीयता और स्वार्थ की पराकाष्ठा
हम देख चुके ,
असंभावित मानसिक कष्ट और दुःखों को
हम झेल चुके ,

कब तक हम अपने भविष्य को
असुरक्षित करते रहेंगें ?
किसी दूसरे के कृकत्य का फल नियति मान
भोगते रहेंगे ?

हमें समस्त विवादों और व्यक्तिगत हितों से परे
सोचना होगा ,
त्रासदी के प्रारंभ से पहले एकजुटता से उसे
समूल नष्ट कर देना होगा ,

वरना फिर निरीहों की सामुहिक हत्या होगी ,
पुनः मानवता सिसकती मूकदर्शक बन रह जायेगी।

Language: Hindi
116 Views
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