कुम्भ मेला पर दोहे
हिंदी दोहे – कुम्भ मेला
मेला लगते कुम्भ के , जहाँ तीर्थ अनुभाग |
मकर संक्रांति काल में , रहते पुण्य पराग ||
मंथन सागर का हुआ , निकला कुम्भ महान |
अमरत जिसमें था भरा , बनकर के वरदान ||
दैत्य झपटते कुम्भ पर , गिरते भू पर अंश |
चार तीर्थ तब बन गए , जो है अमरत वंश ||
नासिक सँग उज्जैन है , गिनो तीर्थ हरिद्वार |
है प्रयाग चौथा सुनो , लगें कुम्भ दरबार ||
अमरत जैसा फल मिले , करके कुम्भ नहान |
हर – हर गंगे बोलते , करते जय -जय गान ||
आता बारह साल में , जहाँ कुम्भ उल्लास |
करते सभी नहान है , तीर्थ लगे तब खास ||
बारह बारह साल जब , जुड़ते बारह बार |
महाकुम्भ संयोग का , अवसर तब सुखकार ||
महाकुम्भ अवसर बने , अनुपम तीर्थ प्रयाग |
शाही सभी नहान हों , संगम के भू भाग ||
महाकुम्भ में देखते, संतों का जयगान |
मिलें एक से एक हैं , नागा साधु सुजान ||
सुभाष सिंघई