परित्यक्त अपने को सक्षम करें।
शौ गांवों का जमीदार हैं तू ;
क़िरदार अपनी आंखों में झलक उठता है,
खाली सूई का कोई मोल नहीं 🙏
डरना हमको ज़रा नहीं है,दूर बहुत ही कूल भले हों
आभासी दुनिया में सबके बारे में इक आभास है,
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
!! "सुविचार" !!
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी