संदली सी सांझ में, ज़हन सफ़ेद-कागज़ के नाव बनाये।
*सर्दी का आनंद लें, कहें वाह जी वाह (कुंडलिया)*
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
नहीं, अब नहीं,-----------मैं
आखिर कुछ तो सबूत दो क्यों तुम जिंदा हो
समझे यह हमको दुनिया परवाह नहीं हमें
वेदनाओं का हृदय में नित्य आना हो रहा है, और मैं बस बाध्य होकर कर रहा हूँ आगवानी।
राम तत्व
Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan"
जिंदगी में अपने मैं होकर चिंतामुक्त मौज करता हूं।