चेहरे को भिगोया है

आपकी याद में बेकल,
मेरा दिल भी रोया है।
दृग से गिरते आँसू ने,
चेहरे को भिगोया है।
रह- रह कर मेरे दिल में,
अजब सी पीर उठती है।
सहसा पूरे शरीर में,
तीव्र बिजली दौड़ती है।
सुध-बुध नहीं रही तन की,
मन सपनों में खोया है।
दृग से गिरते आँसू ने,
चेहरे को भिगोया है।
न चाहकर भी जाने क्यों?
आप की याद आती है।
व्याकुल कर मेरे दिल को,
सारी रात रुलाती है।
हमारे तन ने रात भर,
कष्ट का बोझ ढोया है।
दृग से गिरते आँसू ने,
चेहरे को भिगोया है।
यदि करते प्रेम न तुमसे,
ज़िन्दगी शान से जीते।
दिल को दर्द नहीं मिलता,
खुद से निज घाव न सीते।
अपनी ज़िन्दगी में स्वयं,
बस काँटों को बोया है।
दृग से गिरते आँसू ने,
चेहरे को भिगोया है।
कुछ भी समझ नहीं आता,
क्यों इन्तजार रहता है।
तुम्हारे प्रेम में पागल,
दिल बेकरार रहता है।
व्यथित मन नहीं पल भर भी,
रात में तनिक सोया है।
दृग से गिरते आँसू ने,
चेहरे को भिगोया है।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)