साँस घुटती है

साँस घुटती है
साँस घुटती है इन जहरीली हवाओं में,
सपनों की दुनिया खो गई है अंधेरों में।
पेड़ों की छाँव, अब खो गई कहीं,
यादों की धूल से मन भरा है यहीं।
चाँदनी रातें भी अब डराने लगीं,
सितारों की चमक जैसे बुझने लगी।
शहर की बत्तियाँ तो जगमग हैं मगर,
दिल की उजालों में ढूँढें राहत के असर।
धरती की गोद में जहर है समाया,
आसमान ने भी अपना रंग बदलाया।
बारिश की बूँदें अब शीतल नहीं,
धड़कनें भी जैसे रुकने लगीं।
आओ, मिलकर उम्मीद की लौ जलाएँ,
इन जहरीली हवाओं से जंग लड़ें।
हरियाली की चादर फिर से बिछाएँ,
जीवन में फिर नया सवेरा करें।
रखें दिलों में प्यार, उम्मीद का संग,
साँसों में भरें ताजगी का रंग।
प्रकृति का मान, हरियाली का सम्मान,
साँसें महकें, और जीवन हो आसान।
प्रो. स्मिता शंकर
सहायक प्राध्यापक ,हिन्दी विभाग
बेंगलुरु-560045