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25 Nov 2024 · 1 min read

//अब इंसान परेशान है//

//अब इंसान परेशान है//

अच्छी थी पगडंडी अपनी।सड़कों पर तो जाम बहुत है।।
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो।सबके इतने काम बहुत है।।
नहीं जरूरत बूढ़ों की अब, गूगल पर अब ज्ञान बहुत है।।
उजड़ गए सब बाग बगीचे।दो गमलों में शान बहुत है।।l
मट्ठा, दही नहीं है खाते ।कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।
पीते हैं जब चाय और कोला तब कहीं।कहते हैं आराम बहुत है।।
बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।फेसबुक ,इंस्टाग्राम बहुत है।।
आदी हैं ए.सी. के है इतने।कहते बाहर घाम बहुत है।।
झुके-झुके स्कूली बच्चे।बस्तों में सामान बहुत है।।
सुविधाओं का ढेर लगा हैपर इंसान परेशान बहुत है.

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