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11 Nov 2024 · 1 min read

#ग़ज़ल

#ग़ज़ल
हम नहीं होंगे…।
【प्रणय प्रभात 】
★ अगर ये ज़ख़्म ना होंगे तो फिर मरहम नहीं होंगे।
बड़ी बेरंग होगी ज़िन्दगी, जब ग़म नहीं होंगे।

★ भरी महफ़िल उठाते हैं कसम तर्के-तआल्लुक़ की।
जहां तेरे क़दम होंगे, वहाँ अब हम नहीं होंगे।।

★ तुम्हारी सोच जिस्मानी, मेरे जज़्बात रूहानी।
हज़ारों कोशिशों से फ़ासले ये कम नहीं होंगे।।

★ यहां पे बैठ के रोना-बिलखना छोड़ दे प्यारे!
ये टीले रेत के हैं, आंसुओं से नम नहीं होंगे।।

★ यकीं होता नहीं लेकिन, यकीं करना ही पड़ता है।
गुलों के बीच गुल होंगे, यहाँ पे बम नहीं होंगे।।

★ जले घर देखते फिरते हो, बन कर के तमाशाई।
तुम्हारी बस्तियों में क्या कभी मातम नहीं होंगे??

★ ये सूखेंगे मगर अपनी निशानी छोड़ जाएंगे।
ये क़तरे आंसुओं के हैं कभी शबनम नहीं होंगे।।

★ ज़हन से क़ल्ब तक उभरें तो कोई बात है प्यारे!
क़दम साहिल की भीगी रेत पे कायम नहीं होंगे।।

★ उजालों में उपजते हैं उजालों में लिपटते हैं।
वो साये हैं अंधेरों में कभी हमदम नहीं होंगे।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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