दिलनशीं आसमॉं
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
कवनो गाड़ी तरे ई चले जिंदगी
बेरोजगारी मंहगायी की बातें सब दिन मैं ही दुहराता हूँ, फिरभ
डिग्रियों का कभी अभिमान मत करना,
अनपढ़ रहो मनोज (दोहा छंद)
ख़्वाब उसके सजाता रहा.., रात भर,
रो रहा हूं में अक्सर उन्हें याद कर,
आपसे होगा नहीं , मुझसे छोड़ा नहीं जाएगा
- हर हाल में एक जैसे रहो -
मैं रात भर मैं बीमार थीऔर वो रातभर जागती रही