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1 Nov 2024 · 2 min read

एक नस्ली कुत्ता

लेकिन उस दिन जब घंटी बजाई,
भौं-भौं जैसी कोई आवाज नहीं आई।
सोचने लगा आखिर क्या बात है,
टाईगर ने रौद्र गर्जंन क्यों नहीं सुनायी ?

अंदर गया तो देखा सन्नाटा पसरा था
मौन बता रहा था गंभीर कोई मसला था।
मैं जब कभी जाता था, वह पास आता था
न चाहकर भी मेजबान की खुशी निमित्त उसके कोमल रोयाँ को सहलाता था।

लेकिन आज वह नहीं आया,
अपने बदन को भी नहीं हिलाया।
वह सिक्कड़ में जकड़ा पड़ा था,
शायद किसी लफड़े में फंसा था।

मेरी नज़र उसकी नज़रों से मिली,
आँखें डबडबा गईं,उदासी गहरा गयी।
मैंने मेजबान से पूछा- “भैया,
आज टाइगर इतना उदास क्यों है?”

भैया दुःखी स्वर में बोले- “क्या बताऊं
दूभर हो गयी है जिंदगी, कैसे समझाऊँ?
कल कुछ अवारा कुत्तों ने इसको चुन लिया,
उच्च वर्गीय कहकर इसको खूब धुन दिया ।

बोला “तुम मालिक के बूते पर इतराते हो,
हमारी इतनी संख्या देखकर भी गुर्राते हो।
रात में हमारे संग करते हो भौं भौं
दिन में भौंक कर बहादुरी दिखलाते हो?

हम पूंजीपति वर्ग के दास नहीं बनते हैं,
स्वतंत्र हैं,अटालिका में वास नहीं करते है
तुम कार में चलो या मेम के गले से लगो
हम तुम्हारे जैसे कुत्तों से बात नहीं करते हैं।

हम कहते हैं हमारी बात मान जाओ
हमारे संघ में आ जाओ,मौज मनाओ
जहाँ चाहो घूमों फ़िरो रहकर मनमौजी
गुलामी भरी जिंदगी को दूर भगाओ।

पर इसने नहीं मानी उनकी बातें,
बात बढ़ गयी होने लगी घातें प्रतिघातें।
फिर इसपर एक ने इसको चुन लिया
सब मिल कर इसे बेरहमी से धुन दिया,

तब से मेरे घर में मातम छाया है,
इसने भी कल से कुछ नहीं खाया है।
मेरे कुत्ते को इतना मारा,सदमे में मैं भी हूं,
सोच रहा हूं क्या करूं और क्या न करूं।

तब मैंने अपनी चुप्पी तोडी और बोला
भैया, जाने दीजिये, तनाव मत लीजिये।
प्रजातंत्र की भनक कुत्तों को मिल गयी है
उन्हें पता है गरीबों और अमीरों में ठन गई है

हो सकता है वे सब प्रतिशोध की भावना से ग्रसित हों
संख्या बल अधिक है इसलिए उद्वसित हों।
“हाँ मनोरथ, तुम सही हो” इतना ही बोले
मुझे लगा उनकी आँखों से निकल रहे थे
बड़े- बड़े क्रोध के गोले।

मनोरथ, पटना
.

Language: Hindi
70 Views
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