Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Oct 2024 · 3 min read

*साहित्यिक कर्मठता के प्रतीक स्वर्गीय श्री महेश राही*

साहित्यिक कर्मठता के प्रतीक स्वर्गीय श्री महेश राही
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
श्री महेश राही में अद्भुत ऊर्जा थी। कार्यक्रमों के आयोजन में वह अग्रणी रहते थे। जितना लिखना, उससे ज्यादा लेखकीय सम्मेलनों में भागीदारी करना उन्हें प्रिय था। प्रगतिशील लेखक संघ में उन्होंने काफी काम किया था। उसके आयोजनों में वह देश के अलग-अलग भागों में अपनी सहभागिता दर्ज करने के लिए जाते थे।

श्री महेश राही का साहित्यिक सफर और सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक का प्रकाशन दोनों एक साथ चला। शुरुआत के वर्षों से ही एक लेखक के रूप में श्री महेश राही की सहकारी युग के साथ सहभागिता रही। दोनों सहयात्री थे। महेंद्र जी की आयु कुछ ज्यादा थी, लेकिन दोनों में मित्रता का भाव था। महेश राही जी का पहला उपन्यास ‘डोलती नैया’ संभवत साठ के दशक में सहकारी युग साप्ताहिक में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ। इसमें श्रृंगार की प्रधानता थी। उस समय पुस्तक रूप में यह उपन्यास प्रकाशित होने से चूक गया। फिर कई दशक बाद जब महेश राही जी ने एक उपन्यास के रूप में इसे प्रकाशित करने की दृष्टि से दोबारा गौर किया तो उन्हें इस पर काफी काम करने की जरूरत महसूस हुई। काम वहीं छूट गया।

जीवन के आखिरी दशक में उन्होंने ‘तपस’ नामक उपन्यास लिखा और उसे पुस्तक रूप में प्रकाशित कराया। इसमें उनकी वैचारिक प्रौढ़ता की छाप देखने में आती है। लंबे समय तक समाज में काम करने के अपने अनुभवों को देखते हुए महेश राही जी ने आर्य समाज की विचारधारा को सर्वोपरि माना और महर्षि दयानंद की जाति भेद से रहित समाज निर्माण की शिक्षाओं को विभिन्न प्रसंगों और संवादों के रूप में तपस उपन्यास में शामिल किया। उनकी सामाजिक चेतना का ‘तपस’ उपन्यास एक प्रकार से चरमोत्कर्ष कहा जा सकता है।

उपन्यास लेखन के साथ-साथ कहानी-लेखन की दिशा में भी उनका योगदान सराहनीय रहा। ‘कारगिल के फूल’ उनका बहुचर्चित कहानी संग्रह था। इसमें देशभक्ति के विचारों को प्रमुखता दी गई है।

कहानी लिखने के साथ-साथ कहानी पढ़ने की कला में भी महेश राही जी ने प्रयोग किए हैं। अपने निवास पर प्रसिद्ध कथाकार श्री काशीनाथ सिंह को उन्होंने आमंत्रित करके चुने हुए साहित्यकारों के मध्य अपनी एक कहानी पढ़ कर सुनाई थी। उस पर काफी चर्चा भी हुई। सब ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए थे।
साहित्यकारों को अपने निवास पर आमंत्रित करके साहित्य-लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति उनमें प्रबल थी। 1986 में जब श्री विष्णु प्रभाकर रामपुर आए तो उनके निवास पर भी गए। समय-समय पर विभिन्न साहित्यकारों के साथ उन्होंने आत्मीय संबंध बनाए। कहानीकार कुमार संभव उनके अभिन्न मित्र थे। परिवेश पत्रिका का कुमार संभव अंक आयोजित करने में संपादक मूलचंद गौतम के साथ उनका भी भारी सहयोग था।

रामपुर में सुप्रसिद्ध उपन्यासकार प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल के निवास पर उनकी प्रतिदिन साहित्यिक-वैचारिक गोष्ठी होती थी। उसमें डॉक्टर ऋषि कुमार चतुर्वेदी जी भी पधारते थे। बहुधा भोलानाथ गुप्त जी भी आ जाते थे। एक-दो अन्य लोग भी आते थे। यह साहित्यिक गतिविधि से कहीं अधिक आत्मीय भावों को प्रगाढ़ बनाने की उनकी प्रवृत्ति थी, जो प्रकट होती थी।

महेश राही जी सबसे मृदुतापूर्ण संबंध बनाने में निपुण थे। संबंध बनाकर उसे निभाने की कला भी उन्हें आती थी। मेरा उनसे 1983 से लगभग तीन दशक का निकट संपर्क रहा वह कड़वी बात कहने से परहेज करते थे। सामंजस्य बिठाना उनके जीवन जीने की कला थी। उन्हें शत-शत प्रणाम!
_________________________________
राही धन्य महेश जी, हिंदी के सिरमौर (कुंडलिया)
_________________________________
राही धन्य महेश जी, हिंदी के सिरमौर
नगर रामपुर में नहीं, दिखता उन-सा और
दिखता उन-सा और, उच्च आयोजन करते
कलमकार के साथ, कलम लेकर पग धरते
कहते रवि कविराय, सदा समरसता चाही
उपन्यास अति श्रेष्ठ, ‘तपस’ सत्पथ का राही
_______________________
लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

100 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

मुसलसल छोड़ देता हूं
मुसलसल छोड़ देता हूं
पूर्वार्थ
मनुष्य को...
मनुष्य को...
ओंकार मिश्र
विवशता
विवशता
आशा शैली
रिश्ते
रिश्ते
Ashwini sharma
ठहरना मुझको आता नहीं, बहाव साथ ले जाता नहीं।
ठहरना मुझको आता नहीं, बहाव साथ ले जाता नहीं।
Manisha Manjari
भुट्टे हैं सेहत के देसी नुस्खे
भुट्टे हैं सेहत के देसी नुस्खे
Sarla Mehta
इंतजार बाकी है
इंतजार बाकी है
शिवम राव मणि
*जिनसे दूर नहान, सभी का है अभिनंदन (हास्य कुंडलिया)*
*जिनसे दूर नहान, सभी का है अभिनंदन (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
राधे राधे
राधे राधे
ललकार भारद्वाज
मुहब्बत भी इक जरूरत है ज़िंदगी की,
मुहब्बत भी इक जरूरत है ज़िंदगी की,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मेरे प्रभु राम आए हैं
मेरे प्रभु राम आए हैं
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
ये मन रंगीन से बिल्कुल सफेद हो गया।
ये मन रंगीन से बिल्कुल सफेद हो गया।
Dr. ADITYA BHARTI
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Tlash
Tlash
Swami Ganganiya
जातिवाद का भूत
जातिवाद का भूत
मधुसूदन गौतम
ये धरती महान है
ये धरती महान है
Santosh kumar Miri
नववर्ष है, नव गीत गाएँ..!
नववर्ष है, नव गीत गाएँ..!
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
दश्त में शह्र की बुनियाद नहीं रख सकता
दश्त में शह्र की बुनियाद नहीं रख सकता
Sarfaraz Ahmed Aasee
बीज उजाळी भादवै, उमड़ै भगत अपार।
बीज उजाळी भादवै, उमड़ै भगत अपार।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
जितना आसान होता है
जितना आसान होता है
Harminder Kaur
मेरे हाल से बेखबर
मेरे हाल से बेखबर
Vandna Thakur
नवरात्र में अम्बे मां
नवरात्र में अम्बे मां
Anamika Tiwari 'annpurna '
अहं का अंकुर न फूटे,बनो चित् मय प्राण धन
अहं का अंकुर न फूटे,बनो चित् मय प्राण धन
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
*
*"श्रद्धा विश्वास रुपिणौ'"*
Shashi kala vyas
संस्कृति
संस्कृति
Rambali Mishra
मेरे रहबर मेरे मालिक
मेरे रहबर मेरे मालिक
gurudeenverma198
धरा और इसमें हरियाली
धरा और इसमें हरियाली
Buddha Prakash
अब मेरी मजबूरी देखो
अब मेरी मजबूरी देखो
VINOD CHAUHAN
Prastya...💐
Prastya...💐
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
झूठों की मंडी लगी, झूठ बिके दिन-रात।
झूठों की मंडी लगी, झूठ बिके दिन-रात।
Arvind trivedi
Loading...