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12 Oct 2024 · 1 min read

थोथा चना ©मुसाफ़िर बैठा

वसुधैव कुटुम्बकम
सारे जहाँ से अच्छा…
है प्रीत जहाँ की रीत सदा…
सत्यमेव जयते
आदि इत्यादि जैसे उच्च उत्तंग उदात्त उन्मत्त मानवीय भावों के
ठकुरसुहाती छद्म कपटी उद्घोष जहाँ हैं
रहे भी हों अगरचे ये
अपवाद में भी तो कोई चिन्ह मिले न?
अलबत्ता पलते वही सदा से रहे हैं
अभी भी पल रहे हैं
कटुता अमानवता बैर द्वेष गैरबराबरी अन्याय बरजोरी
हकमारी हठधर्मिता कर्तव्यहीनता स्वार्थसिद्धि के नितांत ओछे भाव
असल में धरातल पर
यानी कि
छल छद्मों की भरी अटारी

काशी मथुरा वृन्दावन की धर्मनगरी की विधवा-व्यथा का
विकट नंगा सच जब हो सामने हमारे
ओल्ड एज होम जब घर कर रहे समाज में

कौन से कुटुंबपन
किससे अच्छा कैसे अच्छा
किस प्रीत की कौन सी रीत
और कैसी जय
पर बात कर रह रह
घन घमंड करते हो भाई?

ठकुरसुहाती बेपेंदी के इन किस्सों पर क्या?

Language: Hindi
50 Views
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