Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Oct 2024 · 2 min read

नवरात्रि (नवदुर्गा)

नवदुर्गा
~~~~~~~~~~~~~~
मां दुर्गा के नवरूपों में, प्रथम शैलपुत्री का ध्यान।
पुत्री रूप में इनको पाकर, पर्वतराज धन्य हिमवान।
कर में कमल त्रिशूल सुशोभित, अर्धचन्द्र विराजित भाल।
करे सवारी नित्य वृषभ की, सबको देती शुभ वरदान।
~~~~~~~~~~~~~~
ब्रह्मचारिणी माता का शुभ, तपस्विनी का है रूप।
करमाला के साथ कमण्डल, नैसर्गिक छवि भव्य अनूप।
नवदुर्गा में स्थान दूसरा, सत्य हृदय से कर लें ध्यान।
मिट जाएगा तम जीवन का, खूब खिलेगी उजली धूप।
~~~~~~~~~~~~~~
परम शान्तिदायक कल्याणी, तन है सुन्दर स्वर्ण समान।
तृतीय चन्द्रघन्टा देवी का, नैसर्गिक है रूप महान।
दस हाथों में अस्त्र शस्त्र हैं, युद्ध हेतु रहती तैयार।
सिंहवाहिनी मां का अर्चन, करता हर एश्वर्य प्रदान।
~~~~~~~~~~~~~~
कूष्माण्डा दुर्गा चतुर्थ है, करती सूर्य लोक में वास।
अखिल सृष्टि की यही रचयिता, सभी सिद्धियां इनके पास।
सिंह वाहिनी अष्टभुजा मां, कण कण में है इनका तेज।
पावन कृपा दृष्टि पाने हित, नित्य सभी हम करें प्रयास।
~~~~~~~~~~~~~~
करें स्कंदमाता की पूजा, नवदुर्गा में पंचम स्थान।
सिंहवाहिनी पद्म विराजित, विजय दिलाती मातु महान।
नवरात्रि में करें उपासना, भक्ति भावमय मन हो खूब।
शुभ्र वर्ण है कमल करों में, देती भक्तों को वरदान।
~~~~~~~~~~~~~~
सिंहरूढ़ा मां कात्यायनी, नवदुर्गा में षष्ठ स्थान।
खड्ग पद्म सँग शोभा न्यारी, कर मुद्रा वर अभय प्रदान।
कात्यायन ऋषि की कन्या में, ब्रह्मा श्रीहरि शिव का तेज।
महिषासुर को मार गिराया, किया शक्ति का जब संधान।
~~~~~~~~~~~~~~
सप्तम दुर्गा कालरात्रि है, कंठ सुशोभित विद्युत माल।
घने तमस सा रूप भयंकर, गोल नयन है बिखरे बाल।
गर्दभ वाहन खड्ग शूल धर, करती है वर अभय प्रदान।
श्वास और प्रश्वास से उठती, अग्नि की लपटें अति विशाल।
~~~~~~~~~~~~~~
रूप धवल आभामंडित है, नवदुर्गा में अष्टम स्थान।
वर अभय देती भक्तों को, है वृषारूढ़ा मातु महान।
देव ऋषिगण करें आराधन, करती मां जग का कल्याण।
डमरू त्रिशूल कर में शोभित, शिव इनको देते वरदान।
~~~~~~~~~~~~~~
सभी सिद्धियां देने वाली, करें सिद्धिदात्री का ध्यान।
नवदुर्गा में स्थान नवम है, कमलासन पर विराजमान।।
चार भुजाओं में थामे है, शंख चक्र और गदा पद्म।
महादेव इनके आराधक, प्राप्त किया करते वरदान।
~~~~~~~~~~~~~~
©सुरेन्द्रपाल वैद्य, ११/१०/२०२४

1 Like · 1 Comment · 42 Views
Books from surenderpal vaidya
View all

You may also like these posts

डूबते को तिनके का सहारा मिल गया था।
डूबते को तिनके का सहारा मिल गया था।
Ritesh Deo
बेहद मामूली सा
बेहद मामूली सा
हिमांशु Kulshrestha
मैं तुमसे यह नहीं पूछुंगा कि------------------
मैं तुमसे यह नहीं पूछुंगा कि------------------
gurudeenverma198
आज के दौर में मौसम का भरोसा क्या है।
आज के दौर में मौसम का भरोसा क्या है।
Phool gufran
गुरू नमन
गुरू नमन
Neha
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
कवि रमेशराज
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
* पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता*
* पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता*
पूर्वार्थ
"अयोध्या की पावन नगरी"
राकेश चौरसिया
दूबे जी का मंच-संचालन
दूबे जी का मंच-संचालन
Shailendra Aseem
* चान्दनी में मन *
* चान्दनी में मन *
surenderpal vaidya
शुक्र करो
शुक्र करो
shabina. Naaz
"किसान का दर्द"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
"सहर होने को" कई और "पहर" बाक़ी हैं ....
Atul "Krishn"
" स्मार्टनेस "
Dr. Kishan tandon kranti
प्यारे बच्चे
प्यारे बच्चे
Pratibha Pandey
कसौटी से गुजारा जा रहा है
कसौटी से गुजारा जा रहा है
अरशद रसूल बदायूंनी
" महखना "
Pushpraj Anant
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
The_dk_poetry
रण गमन
रण गमन
Deepesh Dwivedi
नव रात्रि में शक्तियों का संचार
नव रात्रि में शक्तियों का संचार
Santosh kumar Miri
रामपुर का इतिहास (पुस्तक समीक्षा)
रामपुर का इतिहास (पुस्तक समीक्षा)
Ravi Prakash
■ बदलता दौर, बदलती कहावतें।।
■ बदलता दौर, बदलती कहावतें।।
*प्रणय*
मत्तगयंद सवैया
मत्तगयंद सवैया
जगदीश शर्मा सहज
गोपियों का विरह– प्रेम गीत।
गोपियों का विरह– प्रेम गीत।
Abhishek Soni
तुम्हीं सदगुरु तारणहार
तुम्हीं सदगुरु तारणहार
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
अस्तित्व
अस्तित्व
Shyam Sundar Subramanian
58....
58....
sushil yadav
बहुत कुछ बदल गया है
बहुत कुछ बदल गया है
Davina Amar Thakral
प्रकृति का प्रतिशोध
प्रकृति का प्रतिशोध
ओनिका सेतिया 'अनु '
Loading...