स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण पांडेय निर्झर की पुस्तक 'सुरसरि गंगे
उस"कृष्ण" को आवाज देने की ईक्षा होती है
''दाएं-बाएं बैसाखी की पड़ते ही दरकार।
एक गरीब का सम्मान गरीब ही कर सकता है अमीर तो किसी की औकात दे
ज़ौक-ए-हयात में मिला है क्यों विसाल ही,
सबने सलाह दी यही मुॅंह बंद रखो तुम।
विवश मन
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
बचपन में घर घर खेलने वाले भाई बहन जब शादी के बाद अपना अपना घ
किसी और से नहीं क्या तुमको मोहब्बत
कभी ग़म से कभी खुशी से मालामाल है
इस मौसम की पहली फुहार आई है
ज़िंदगी मेरी दर्द की सुनामी बनकर उभरी है
अगर महोब्बत बेपनाह हो किसी से
बड़े दिनों के बाद महकी है जमीं,