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3 Sep 2024 · 1 min read

न पणिहारिन नजर आई

नजारा देहात का.
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न पनिहारिन नजर आई,
न पनघट ही नजर आया ।
न अब चौपाल पर मुझको,
वो जमघट ही नजर आया ।।

छिपा लेती थी महिलाएं,
कभी जो शर्म से चेहरा ।
न अब सिर पर मुझे उनके,
वो घूंघट ही नजर आया ।।

खिलाती थी कभी अम्मा,
दही मथ कर मुझे मक्खन।
न अब मुझको रसोई में,
वो मंथनघट नजर आया।।

बजाते थे जिसे मिलकर,
कभी जो प्यार से सारे ।
न अब देहात में मुझको
वो अभिघट ही नजर आया।।

सुकून मिलता था मुर्दे को,
नदी के तट शिवाले पर।
नही अब गांव में मुझको,
वो मरघट ही नजर आया।
रमेश शर्मा.

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 68 Views

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