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21 Aug 2024 · 1 min read

#आज_का_दोहा

#आज_का_दोहा
■ जो कहीं बहुत अंदर से उपजा। अनायास, एक निर्झर की तरह:-
“खाई, पर्वत, खंडहर,
कूप नहीं हमराज़।
सबने लौटा दी मुझे,
मेरी ही आवाज़।।”
●प्रणय प्रभात7●

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