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6 Jul 2020 · 4 min read

दलित साहित्यकार कैलाश चंद चौहान की साहित्यिक यात्रा : एक वर्णन

हिन्दी-दलित साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कथाकार, उपन्यासकार, कुशल संपादक व प्रकाशक आदि बहुमुखी प्रतिभा के धनी कैलाश चंद चौहान जी का जन्म 01 मार्च 1973 को दिल्ली में एक वाल्मीकि परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम इतवारी लाल और माता का नाम अंगूरी देवी था। कैलाश जी का बचपन घोर अभाव व संकटों के मध्य गुजरा। उन्होंने अपनी मां के साथ शहर में वह पारंपरिक कार्य भी किया, जिससे घर-परिवार का जीवकोपार्जन चलता था। कैलाश जी ने बहुत संघर्षों के साथ कंप्यूटर इंजीनियर की शिक्षा प्राप्त की।

कैलाश जी का पहला उपन्यास ‘सुबह के लिए’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। इससे पहले वे निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां व लेख लिख रहे थे। उनकी पहली कहानी वर्ष 1989 में ‘सारंगा स्वर’ नामक एक व्यावसायिक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। यही से कैलाश जी की साहित्यिक यात्रा की शुरुआत हो गयी थी, इसके बाद उनकी कहानियां व लेख देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते रहे। उन्होंने वर्ष 1991 में ‘आशा’ नाम की एक पत्रिका का संपादन किया था, जिसे वे निरंतर प्रकाशित नही कर पाए। ‘आशा’ पत्रिका के संपादन के कारण कैलाश जी का नाम साहित्यिक चर्चा में आया। ‘आशा’ पत्रिका के कुशल सम्पादन के कारण ही भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने उन्हें ‘डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप’ से वर्ष 1993 में सम्मानित किया। इसके बाद कैलाश जी दलित विमर्श से जुड़े लेख व कहानियां लिखते रहे, जो पंजाब केसरी, हंस, कथादेश, नई दुनिया, जनसत्ता, नव भारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा आदि लगभग तीन दर्जन से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।

कैलाश चंद चौहान उपन्यास की विधा में सशक्त रूप से उभरे, वैसे दलित साहित्य में उपन्यास लेखन करने वाले साहित्यकारों की कमी है। कैलाश जी ने एक सफल दलित उपन्यासकार के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनायी। कैलाश जी ने अपने पहले उपन्यास ‘सुबह के लिए’ के बाद ‘भवंर’ नामक उपन्यास लिखा जो वर्ष 2013 में सम्यक प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास का अभिमत विश्व विख्यात दलित साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने लिखा था। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ‘भवंर’ उपन्यास की भूमिका लिखना चाहते थे, मगर उन दिनों वे स्वस्थ नहीं थे, इसलिए अभिमत ही लिख पाये। कैलाश जी दलितों की समस्याओं पर अपनी अभिव्यक्ति कहानी और लेखों के माध्यम से आमजन तक पहुचाते थे। साहित्य अकादमी के सहयोग से उनका एक कहानी संग्रह ‘संजीव का ढाबा’ वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ था। दूसरा कहानी संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला था, जिसे वे अपने रहते हुए प्रकाशित नही कर पाए। कैलाश जी का चर्चित व अंतिम उपन्यास उनके अपने प्रकाशन ‘कदम प्रकाशन’ से वर्ष 2017 में प्रकाशित हुआ था। ‘विद्रोह’ नामक इस उपन्यास की बहुत ही सारगर्भित भूमिका डॉ. सुशीला टाकभोरें जी, मन्तव्य अनिता भारती जी और अभिमत प्रो. धर्मपाल पीहल जी ने लिखा था।

कैलाश चंद चौहान जी एक कुशल संपादक भी थे, जिसकी शुरुआत वर्ष 1991 में ‘आशा’ पत्रिका के साथ शुरू होती है। इसके बाद मगहर पत्रिका के संपादक मंडल में और युद्धरत आम आदमी पत्रिका के कुछ अंको का सह-संपादन भी किया। कैलाश जी ने अपने संपादन में दूसरी पत्रिका के रूप में वर्ष 2013 में ‘कदम’ (साहित्य एवं जनचेतना की त्रैमासिक पत्रिका) की शुरुआत की। ‘कदम’ का प्रवेशांक जनवरी-मार्च 2013 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद पत्रिका निरंतर प्रकाशित होती रही। कदम पत्रिका ने समय-समय पर कई महत्वपूर्ण विशेषांक निकाले। कदम पत्रिका के अगस्त-अक्टूबर 2013 अंक का अतिथि संपादन ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने किया था, जो सफाई कार्यो में सलंग्न व्यक्तियों पर केंद्रित था। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के देहावसान के उपरांत कैलाश जी ने ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति विशेषांक’ नवम्बर-दिसम्बर 2013, जनवरी 2014 के अंक के रूप में प्रकाशित किया। फरवरी-अप्रैल 2015 अंक साहित्यकार ‘डॉ.तेज सिंह विशेषांक’ के रूप में निकाला, इस अंक की अतिथि संपादक अनिता भारती जी थी।

कैलाश जी ने ‘कदम’ पत्रिका के बाद ‘कदम’ नाम से ही एक प्रकाशन की शुरुआत की। कदम प्रकाशन से साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लगभग तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई। कैलाश जी से पुस्तक प्रकाशन के सम्बंध में मेरी समय-समय पर बातचीत होती रहती थी। कुछ सहमतियों और कुछ असहमतियों के बाद डॉ. प्रवीन कुमार जी की पुस्तक ‘1857 की क्रांति में वाल्मीकि समाज को योगदान’ प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त मैंने जयप्रकाश वाल्मीकि जी का एक कहानी-संग्रह कदम प्रकाशन से प्रकाशित कराने की बात कैलाश जी से कराई थी। जयप्रकाश जी का कहानी-संग्रह लगभग तैयार हो गया था, बस एक कहानी को लेकर कुछ असहमति जयप्रकाश जी और कैलाश जी के बीच थी, जो समय रहते हल ना हो सकी, इसी कारण से इस पुस्तक को कैलाश जी प्रकाशित नही कर पाए। कैलाश जी एक ऐसे प्रकाशक थे जिनका मानना था कि किताबों का मूल्य कम से कम रखना चाहिए ताकि हमारे लोग किताबें आसानी से खरीद कर पढ़ सके। प्रवीन जी की पुस्तक का मूल्य कैलाश जी ने बहुत ही किफायती रखा था। हम उनकी इस बात से पूर्णतया सहमत हैं, पुस्तकें इतनी महँगी नही होनी चाहिए कि जिनके लिए हम लिख रहे हैं वो पढ़ ना सके। दलित लेखक संघ द्वारा संपादित ‘दलित कविताओं की तीन पीढियां एक सवांद’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक कदम प्रकाशन ने ही प्रकाशित की थी। कैलाश जी ने हाल ही में दो पुस्तकों (डॉ.अम्बेडकर क्या और क्यों और दलित साहित्य की चर्चित प्रेम कहानियाँ) का सम्पादन भी किया था।

कैलाश चंद चौहान जी के निधन की सूचना 15 जून 2020 को लगभग दोपहर 2 बजे मुझे युवा कवि अरविन्द भारती जी ने फोन पर दी। उन्होंने कहा कि फेसबुक पर कैलाश जी के निधन की खबर पढ़ी है। क्या यह सही है? मैं सुनते ही दुःखी हो गया। मैंने कहा मुझे मालूम नहीं है इस खबर के बारे में, मालूम करता हूँ। फोन रखने के बाद, मैंने इस दुखद खबर की पुष्टि करने के लिए डॉ. पूनम तुषामड़ जी को फोन किया। पूनम जी ने बताया, हाँ नरेंद्र खबर सही है। तब जाकर मुझे यकीन हुआ। मगर मुझे कभी ऐसा नही लगता कि कैलाश जी हमारे बीच नही है। कैलाश जी आप हमेशा एक कुशल संपादक, प्रकाशक, उपन्यासकार, कथाकार के रूप में हमारी यादों में रहेगें। आपकी स्मृति, आपके प्रति सम्मान हमेशा हमारे दिल में रहेगा। हम आपको भूला नही पायेंगे।

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