24/227. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
कोई हुनर तो हो हम में, कोई जज्बा तो हो,
अपनी इच्छाओं में उलझा हुआ मनुष्य ही गरीब होता है, गरीब धोखा
We will walk the path , English translation of my poem
दूहौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
बेरोजगारी मंहगायी की बातें सब दिन मैं ही दुहराता हूँ, फिरभ
एक महिला अपनी उतनी ही बात को आपसे छिपाकर रखती है जितनी की वह
*जीवन उसका ही धन्य कहो, जो गीत देश के गाता है (राधेश्यामी छं
पंखो सी हलकी मुस्कान तुम्हारी ,
डिफाल्टर
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम