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19 May 2020 · 1 min read

घनाक्षरी

मनहरण घनाक्षरी

घने घने उपवन ,मलय पवन संग,
छनी छनी धूप संग, बहती बयार हो।
शाख संग शाख मिले,वृक्ष घन राशि हिले.
बेल लतिकाओं खिले, उलझी बहार हो.
हरी हरी हरियाली, बह रही जल राशि।
शस्यश्यामला धरा में , कलरव वार हो।
कोयल जो कूक रही , मस्त तान फूँक रही
गीत गाती चूक रही,कोयल से प्यार हो।

रूप घनाक्षरी

हरी हरी धरती है,हरे भरे उपवन,
कल कल बहते है, अविरल नदी ताल.
प्रेमी मनुहार करे, मन में विहार करें,
साथ में पहनते हैं , जन जन वनमाल।
हरी हरी दूब पर, नित्य ही आराम करें
नित्य प्राणायाम करें, वृद्ध, जन हर साल ।
भूमि है ये सुरभित, धन्य धरा धाम पर,
वसुधा के भाग्य में है,वसुधा का हर लाल।

डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव.’प्रेम’

3 Likes · 2 Comments · 345 Views
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