Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Aug 2024 · 3 min read

मोबाइल

मोबाइल

अनस कक्षा छ: का होनहार विद्यार्थी था। वह प्रतिदिन समय पर विद्यालय जाता और घर पर भी आकर पढ़ाई करता था। रविवार का दिन था। अनस ने अपने पिताजी से मोबाइल गेम खेलने के लिए मांँगा। थोड़ी देर गेम खेलने के बाद पिता जी को मोबाइल वापस कर दिया, पर उसे मोबाइल गेम बहुत पसन्द आया। कुछ दिनों बाद अनस का जन्मदिन था। उसने मन में मन ही मन विचार कर लिया कि इस जन्मदिन पर पिताजी से उपहार में एक नया मोबाइल मांँगूँगा।
जन्मदिन आते ही अनस ने पिताजी से अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा, “पिताजी मुझे उपहार में एक नया मोबाइल चाहिए, और कुछ नहीं चाहिए।”
पिताजी ने समझाया,”बेटा! तुम अभी बहुत छोटे हो, रही बात गेम खेलने की तो तुम मेरा मोबाइल कभी-कभी ले लिया करो।”
पर अनस ने पिताजी की एक बात नहीं मानी। वह जिद करने लगा कि “मुझे मोबाइल चाहिए तो चाहिए, वरना मैं खाना भी नहीं खाऊंँगा और न ही जन्मदिन की पार्टी मनाऊंँगा।”
इस तरह अनस ने अपने जन्मदिन पर पिताजी से जिद करके मोबाइल फोन ले ही लिया।
अनस का जन्मदिन होने के कारण उसके पिताजी मोबाइल दिलाने से मना नहीं कर पाये, लेकिन उस को समझाते हुए बोले, “अगर तुम एक दिन भी विद्यालय नहीं गये, तो मोबाइल वापस ले लेंगे।”
अनस ने कहा,”ठीक है पिताजी! मैं प्रतिदिन विद्यालय जाऊंँगा, जैसे पहले जाता था। घर पर आकर पढ़ाई भी करूंँगा। खेल के समय ही मोबाइल का इस्तेमाल करूंँगा, वह भी कुछ समय के लिए।”
कुछ दिन बीतने के बाद अनस ज्यादा समय मोबाइल को देने लगा। विद्यालय न जाने के नये-नये बहाने खोजने लगा।
एक दिन ऐसा आया कि अनस ने विद्यालय जाना भी छोड़ दिया। मित्रों, शिक्षकों आदि सभी ने खूब समझाया, पर अनस को मोबाइल गेम खेलने की लत पड़ चुकी थी।
अब अनस पूरी तरह से बदल चुका था। अनस की इन आदतों से सभी लोग बहुत परेशान थे। अनस अब किसी की बात भी नहीं मानता था।
एक दिन अनस ने दिनभर मोबाइल में गेम खेला और रात में भी गेम खेलना शुरू कर दिया। इस तरह से प्रतिदिन अनस की यही आदत बन गयी। कुछ दिनों के बाद उसकी आंँखों में जलन होने लगी। अत्यधिक जलन होने के कारण अनस के अभिभावकों ने डॉक्टर को दिखाया। जब जाँच हुई, तो अनस बहुत दुःखी हो गया। उसने अपने माता-पिता को रोते हुए देखा तो उसे शर्मिन्दगी महसूस हुई। अनस ने मन ही मन अपनी गलती पर पश्चाताप किया। अभिभावकों से भी माफी मांँगी। मोबाइल वापस करते हुए पिताजी से बोला, “काश! पिताजी आपने उस दिन मेरी जिद नहीं मानी होती तो आज मेरी यह हालत न हुई होती। मैंने सब का दिल दुखाया इसलिए मुझे सजा मिली है। आप लोग मुझे माफ़ कर दीजिये।”
अनस के अभिभावकों ने उसे माफ करते हुए गले से लगा लिया।
कुछ दिनों तक अनस की आंँखों का इलाज चला और सब की दुआओं से अनस ठीक हो गया। ठीक होते ही अनस विद्यालय की तरफ चल पड़ा। अपने सभी अध्यापकों व मित्रों से माफी मांँगी और एक नया जीवन शुरू किया।

शिक्षा

हमें मोबाइल जैसी चीजों को अपनी आदत नहीं बनाना चाहिए। इनसे अपना नुकसान होता है।

शमा परवीन
बहराइच,उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 80 Views

You may also like these posts

क्यूँ ये मन फाग के राग में हो जाता है मगन
क्यूँ ये मन फाग के राग में हो जाता है मगन
Atul "Krishn"
कुंडलिया
कुंडलिया
sushil sarna
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
Santosh Shrivastava
सही कदम
सही कदम
Shashi Mahajan
नसीबों का खेल है प्यार
नसीबों का खेल है प्यार
Shekhar Chandra Mitra
करबो हरियर भुंईया
करबो हरियर भुंईया
Mahetaru madhukar
राख देह की पांव पसारे
राख देह की पांव पसारे
Suryakant Dwivedi
"ज्वाला
भरत कुमार सोलंकी
विकल्प
विकल्प
Sanjay ' शून्य'
- माता पिता न करे अपनी औलादो में भेदभाव -
- माता पिता न करे अपनी औलादो में भेदभाव -
bharat gehlot
बेमिसाल इतिहास
बेमिसाल इतिहास
Dr. Kishan tandon kranti
सजना है मुझे सजना के लिये
सजना है मुझे सजना के लिये
dr rajmati Surana
नारी शक्ति का हो 🌹🙏सम्मान🙏
नारी शक्ति का हो 🌹🙏सम्मान🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
आओ!
आओ!
गुमनाम 'बाबा'
Wishing you a Diwali filled with love, laughter, and the swe
Wishing you a Diwali filled with love, laughter, and the swe
Lohit Tamta
हे राम तुम्हारे आने से बन रही अयोध्या राजधानी।
हे राम तुम्हारे आने से बन रही अयोध्या राजधानी।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
*हम बच्चे हिंदुस्तान के { बालगीतिका }*
*हम बच्चे हिंदुस्तान के { बालगीतिका }*
Ravi Prakash
किताबें
किताबें
Dr. Bharati Varma Bourai
कुंडलिया
कुंडलिया
अवध किशोर 'अवधू'
प्रत्युत्पन्नमति
प्रत्युत्पन्नमति
Santosh kumar Miri
द्वैष दुर्भाव
द्वैष दुर्भाव
Sudhir srivastava
संवेदना
संवेदना
Khajan Singh Nain
माँ के बिना घर आंगन अच्छा नही लगता
माँ के बिना घर आंगन अच्छा नही लगता
Basant Bhagawan Roy
अर्थ में,अनर्थ में अंतर बहुत है
अर्थ में,अनर्थ में अंतर बहुत है
Shweta Soni
सत्संग शब्द सुनते ही मन में एक भव्य सभा का दृश्य उभरता है, ज
सत्संग शब्द सुनते ही मन में एक भव्य सभा का दृश्य उभरता है, ज
पूर्वार्थ
प्रिय मित्रों!
प्रिय मित्रों!
Rashmi Sanjay
अंजान बनकर चल दिए
अंजान बनकर चल दिए
VINOD CHAUHAN
😊
😊
*प्रणय*
बुलन्दियों को पाने की ख्वाहिश तो बहुत थी लेकिन कुछ अपनो को औ
बुलन्दियों को पाने की ख्वाहिश तो बहुत थी लेकिन कुछ अपनो को औ
jogendar Singh
यू-टर्न
यू-टर्न
Shreedhar
Loading...