गज़ल काफिर कौन

यूं बेवजह मौत को कौन गले लगाता है,
जीत कर भी जो बार बार हार जाता है,
जिसकी भलाई में मतलब नजर आता है,
भाषण प्रवचन में लच्छे मलाई घोलता है,
इतनी आसानी से, तुम्हें लगता है, मुक्त,
जिनके सारे प्रयास, पिंजरे बनाने में है .
वो आजाद पंथी को देख गुस्सा करता है,
मन में उनके खिलाफ, जाल बुनता है..
ताल उनकी देखकर और सिहर उठता है.
नहीं नियति जिन्हें पसंद सम्प्रदायी करता है