तुमको ही लिख जाते हैं

स्याही नहीं, मैं ख़ूँ से लिखता
कलम भी होती लाल
हर्फ़-हर्फ़ में, दिल का क़तरा
भाव धधकते ज्वाल
सतर-सतर में प्रेम की ख़ुशबू
लफ्ज़ महक ही जाते हैं
पढ़ते, सुनते, गुनते, बुनते
तुमको ही लिख जाते हैं
–कुँवर सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ✍️
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