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14 Jul 2024 · 1 min read

#देसी_ग़ज़ल (तेवरी)

#देसी_ग़ज़ल (तेवरी)
■पीटते हैं ढोल वो।।
【प्रणय प्रभात】

मोल खो कर के बने बेमोल वो।
बोलते हैं बेतुके से बोल वो।।

भेड़ बन के घूमते थे कल तलक।
शेर का ले आए हैं अब खोल वो।।

शोरबा देने का वादा भूल कर।
आज ले कर आ गए हैं झोल वो।।

उंगलियां कानों में जनता ठूंस ले।
इसलिए बस पीटते हैं ढोल वो।।

भौंकना इक दूसरे पर क्या ग़लत?
जानते इक दूसरे की पोल वो।।

क्यूं करे अपने लिए कोना तलाश?
मानता हो जो जगत को गोल वो।।

●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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