आजकल लोग बहुत निष्ठुर हो गए हैं,
मेरी जो बात उस पर बड़ी नागवार गुज़री होगी,
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - २)
*हॅंसते बीता बचपन यौवन, वृद्ध-आयु दुखदाई (गीत)*
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर
कितनी लाज़वाब थी प्रस्तुति तेरी...
बेवजह ख़्वाहिशों की इत्तिला मे गुज़र जाएगी,
टीस
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
कागज ए ज़िंदगी............एक सोच