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5 May 2024 · 1 min read

गंगा से है प्रेमभाव गर

गंगा से है प्रेमभाव गर अरे गंगा को मन में उतार लो
शुद्ध कर्म अपनाकर सारे गंगा अपने मन में धार लो
गंगा से है प्रेमभाव गर……………

क्या होगा गंगा नहाकर मैल नहीं मन का जो धोया
क्या होगा तीर्थ करके जो अय्याशी में जीवन खोया
बुरे भाव त्याग कर सारे जीवन अपने को संवार लो
गंगा से है प्रेमभाव गर…………..

गंगा नहाकर पाप कटे तो सड़ते क्यों कैदी जेलों में
बीच रास्तों में नहीं होते कभी हादसे यूँ बस, रेलों में
रखो शुद्ध आत्मा अपनी वाणी में ही गंगा उतार लो
गंगा से है प्रेमभाव गर…………..

दीन-दुखी के कष्ट हरो सेवा का भाव दिखाना है तो
मात-पिता की सेवा कर लो पितृ दोष मिटाना है तो
घर में बहे त्रिवेणी” विनोद” जब चाहे डुबकी मार लो
गंगा से है प्रेमभाव गर……………

(हर हर गंगे नमामी गंगे)

स्वरचित
V9द चौहान

2 Likes · 127 Views
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