ग़ज़ल _ दर्द भूल कर अपने, आप मुस्कुरा देना !
इस शहर से अब हम हो गए बेजार ।
तानाशाह के मन में कोई बड़ा झाँसा पनप रहा है इन दिनों। देशप्र
तुम क्यों अपना जीवन खराब करने में लगे हो दोस्त !
#अभी रात शेष है
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
एक अच्छे समाज का निर्माण तब ही हो सकता है
*बरसातों में रो रहा, मध्यम-निम्न समाज (कुंडलिया)*
नींद आंखों में जमी रही, जाने कितने पहर गए