वक्त ने क्या क्या किये सितम।
एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
ग़ज़ल _ इस जहां में आप जैसा ।
निस्वार्थ एवं कल्याणकारी भाव से दूसरों के लिए सोचना यही है स
तेवरी और ग़ज़ल, अलग-अलग नहीं +कैलाश पचौरी
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
चेहरे की पहचान ही व्यक्ति के लिये मायने रखती है
एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
कोई शक्स किताब सा मिलता ।
आए हैं फिर चुनाव कहो राम राम जी।
सच हार रहा है झूठ की लहर में