सच हार रहा है झूठ की लहर में
दोस्तों,
एक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,!!
ग़ज़ल
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सच हार रहा है, झूठ की लहर में,
सब हो गये गुंगे-ओ-बहरे शहर में।
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जनता के है जितने मुद्दे दब रहे है,
नफ़रत की है दीवार बनी दहर में।
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है कैसा आया, जमाना जिंदगी में,
है न अमन यहां शामो ओ सहर में।
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अब हम किस पर विश्वास करे जी,
टूट रही कमर मंहगाई की कहर में।
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है न किसी को फिक्र मुफलिसों की,
उफ़ न पीने को है इक बूंद बहर में।
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झूठ कपट कर आ बैठे सियासत में,
न बचेगा “जैदि” तूं डूबा है ज़हर में।
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मायने:-
दहर:-दुनिया
शाम ओ सहर:-शाम और सुबह
मुफलिसों:-गरीबों की
बहर:-समुंद्र
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”