Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 May 2024 · 1 min read

सच हार रहा है झूठ की लहर में

दोस्तों,
एक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,!!

ग़ज़ल
====

सच हार रहा है, झूठ की लहर में,
सब हो गये गुंगे-ओ-बहरे शहर में।
====================

जनता के है जितने मुद्दे दब रहे है,
नफ़रत की है दीवार बनी दहर में।
====================

है कैसा आया, जमाना जिंदगी में,
है न अमन यहां शामो ओ सहर में।
=====================

अब हम किस पर विश्वास करे जी,
टूट रही कमर मंहगाई की कहर में।
=====================

है न किसी को फिक्र मुफलिसों की,
उफ़ न पीने को है इक बूंद बहर में।
=====================

झूठ कपट कर आ बैठे सियासत में,
न बचेगा “जैदि” तूं डूबा है ज़हर में।
=====================

मायने:-
दहर:-दुनिया
शाम ओ सहर:-शाम और सुबह
मुफलिसों:-गरीबों की
बहर:-समुंद्र

शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”

Loading...