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12 Jun 2024 · 1 min read

बदल रही है ज़िंदगी

चल रही है ज़िंदगी
बदल रही है ज़िंदगी
ठोकरें खाती हुई
संभल रही है ज़िंदगी…
(१)
तख्त और ताज की
रस्म और रिवाज़ की
सारी हदों को लांघकर
निकल रही है ज़िंदगी…
(२)
चाहे कोई साथ न दे
चाहे सभी ताना कसें
मंज़िल की पुकार से
बहल रही है ज़िंदगी…
(३)
हालात के माफ़िक़
वक़्त के मुताबिक
अपने आप लगातार
ढल रही है ज़िंदगी…
(४)
अपने दिल के ख़ून में
आंसुओं को मिलाके
फूर्सत से लिखी गई
ग़ज़ल रही है ज़िंदगी…
(५)
तोड़कर पाबंदियां
अर्श की बुलंदियां
छूने को किसी तरह
मचल रही है ज़िंदगी…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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