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18 Jun 2024 · 7 min read

आख़िरी हिचकिचाहट

आख़िरी हिचकिचाहट

आदित्य ने वर्जिनिया टेक से इंजीनियरिंग करी थी , बिज़नेस मैनेजमेंट इन सी एड सिंगापुर से किया था , और अपने लिए लड़की ढूंढ रहा था। शादी डाट कॉम पर उसने अपना बायो डाटा अपलोड किया , स्वयं के बारे में लिखते हुए उसने लिखा , ‘ मेरी माँ मेडिकल डॉक्टर हैं , मैं बहुत छोटा था जब मेरे पिता की मृत्यु हो गई , मेरी माँ ने मुझे बहुत कठिनियों के साथ अकेले बड़ा किया है , मैं उस लड़की से शादी करना चाहता हूँ जो मेरी माँ के साथ एडजस्ट कर सके।

मेलबोर्न में एम एस सी के अंतिम समेस्टर में पढ़ रही विभूति ने यह पढ़ा, और उसे अच्छा लगा , वह एक पूना के संयुक्त परिवार में बड़ी हुई थी , और रिश्तों की कदर करनी उसे आती थी।

बात आगे बढ़ाने के लिए उसने आदित्य को फ़ोन किया , आदित्य ने कहा कि अगले रविवार वो उससे वीडियो कॉल करेगा और सारी बातें स्पष्ट करेगा।

रविवार को ठीक समय पर उसका फ़ोन आ गया, विभूति को यह भी अच्छा लगा। आदित्य छ फ़ीट का ,
चौड़े कंधो वाला , तेज नैननक्श का आकर्षक नौजवान था। विभूति को उसने बताया , “ मेरी परवरिश मुंबई की है, अँधेरी में हमारा अपना पुश्तैनी मकान है , जहाँ आजकल मेरी माँ अकेली रहती हैं , और कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज में पढ़ाती हैं । मैं किसी भावनात्मक दबाव मेँ न आऊं , इसलिए उन्होंने दूसरी शादी नहीं की , हालाँकि उनके पास इसके लिए कई अवसर थे। विश्वास करो , वे अभी भी बहुत सुन्दर हैं।”

विभूति ने कहा ,” वो तो तुम्हें देखने से खुद ही समझ आ जाता है। ” और वो हंस दी। आदित्य भी थोड़ा मुस्करा कर शर्मा दिया।

“ तो तुम अपनी माँ के लिए क्या करना चाहते हो ?”
“ माँ अभी रिटायर होने वाली हैं , मैं नहीं चाहता वो अकेलापन अनुभव करें , मैं मुंबई में उनके साथ रहना चाहता हूँ। ”
“ यह तो बहुत अच्छी बात है। ”
“ तो तुम मुंबई आकर हमारे साथ रहना चाहोगी ?”
“ हाँ , माँ का आशीर्वाद साथ हो तो और क्या चाहिए। ”
“ तो मुंबई में एक जॉब ऑफर है , उसे स्वीकार कर लूँगा , पर उससे पहले मैं चाहूंगा तुम मेरी माँ से मिल लो , वो यक़ीनन तुम्हें पसंद करेंगी। ”

अगले सप्ताह आदित्य की माँ डॉ नीना कपूर से बात हो गई। फिर दोनों परिवारों का आपस में मिलना हो गया , और देखते ही देखते , आदित्य और विभूति , शादी के बंधन मेँ बंध गए।

आदित्य का अँधेरी मेँ बहुत बड़ा फ्लैट था , चार बेडरूम्स , स्टडी, लिविंग रूम , पारलर, किचन के साथ पैंट्री, छोटा सा टेरेस , तीन बड़ी बड़ी बालकनी। माँ ने उसे बहुत यत्न से सजाया था , उन्हें घूमने फिरने का शौक था , राधाकृष्ण की मूर्तियां, पियानो , पेंटिंग्स , हाथ का बना हुआ झूला , हाथ से काढ़े वाल हैंगिंग्स , सब जगह उनकी सुरुचि की छाप थी।

आदित्य नौकरी मेँ पैर जमा रहा था , माँ ने रिटायर होने के बाद ब्रिज खेलने से लेकर , भजन गाने तक के ग्रुप्स के साथ स्वयं को जोड़ लिया था। विभूति चाहती थी , नौकरी लेने से पहले वो कुछ समय घर मेँ बिताये , एम एस सी , किये हुए उसे एक ही महीना हुआ था , शादी , हनीमून मेँ पिछले महीना किसी सपने सा बीत गया था। वह नए रिश्तों, नए शहर को पहले जीना चाहती थी।

आदित्य ऑफिस से आता तो माँ और विभूति दोनों खिल उठतीं। माँ कुछ समय वहाँ बैठ स्वयं ही भीतर चली जाती। विभूति को लगता , कितनी समझदार हैं , रिश्तों मेँ उचित स्थान की पहचान कितनी जरूरी है।

एक दिन विभूति ने ड्राइंगरूम की थोड़ी सजावट बदल दी। अपने साथ लाइ एबोरजिन आर्ट की कुछ चीज़ें उसने वहां सजा दी। शाम को जब आदित्य आया तो यह देखकर उसके चेहरे पर थोड़ी उलझन उभर आई , पर जैसे ही माँ ने कहा , “ अच्छा लग रहा है न ?” तो वह सहज हो गया। विभूति को कहीं भीतर हल्की चोट लगी , पर उसने दबा दिया।

कुछ दिन बाद विभूति ने कहा , “ हम लोगों की शादी को पूरे तीन महीनें हो गए हैं , एक बार भी तुम्हारे ऑफिस के दोस्तों को घर नहीं बुलाया , इस रविवार को बुला लो , मेरी भी उनसे दोस्ती हो जायगी। ”

“ ठीक है “ कहकर वो सीधा माँ के पास चला गया , वापिस आया तो कहा , “ माँ बिरयानी और हलवा बना देंगी , तुम स्नैक्स बना देना। ”
“ तुम माँ से ये बात करने गए थे। ”
“ हाँ , इसमें क्या गलत है। ”
“ कुछ नहीं। ” वो चुप हो गईं, पर लोगों को घर बुलाने का उसका उत्साह जाता रहा।

जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था , विभूति को लग रहा था , आदित्य तो कोई भी निर्णय स्वयं लेता ही नहीं। वो सारी चर्चा करेगा और अंत मेँ निर्णय अपनी माँ पर डाल देगा। उसकी इस आदत से विभूति के अंदर एक सुलगते क्रोध की तपन घर करने लगी। पर उसे समझ नहीं आ रहा था , असल गड़बड़ कहाँ है , उसने दो वर्ष अकेले ऑस्ट्रेलिया बिताये थे और स्वाभाव से ही वो बचपन से आत्मनिर्भर थी। उसने सोचा , आदित्य तो पूरे सात वर्ष अकेले विदेश में बिता कर आया है , इतनी अच्छी नौकरी करता है , इतनी किताबें पढ़ता है , फिर भी निर्णय नहीं लेता !

कुछ दिनों से विभूति कुछ करने की सोच रही थी , एक दिन उसकी सहेली उससे मिलने आई तो आनन फानन मेँ उसने फैसला कर लिया कि वो उसके स्पा मेँ निवेश करेगी।

शाम को जब आदित्य आया तो उसने बड़े उत्साह से उसे अपना निर्णय सुनाया।
आदित्य ने कहा ,” माँ से पूछा ?”
“ नहीं। यह मेरा अपना पैसा है , ऑस्ट्रेलिया मेँ वैट्रेस्सिंग का काम कर के कमाया है। “
“ बात वो नहीं है , पर तुम्हारा फैसला गलत भी तो हो सकता है। ”
“ तो हो जाये , अपने गलत फैसले की जिम्मेवारी भी मेरी है , तुम मत घबराओ। ”
“ ठीक है। ” कहकर वो जूते उतारने लगा।

“ जाओगे नहीं , अपनी माँ को बताने ?”
“ मतलब ? अब यह कहाँ से आ रहा है ?”
“ मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती। ”
आदित्य ने उसे आश्चर्य से देखा।
“ मैं माँ का ध्यान रखना चाहता हूँ , यह बात मैंने तुम्हें शुरू मेँ ही बता दी थी। ”
“माँ का ध्यान रखना एक बात है , अपने निर्णय न लेना दूसरी, अब मुझे समझ आ रहा है , मुझसे शादी करने का निर्णय भी माँ ने लिया था , तुमने नही।। ”
“ तो इसमें गलत क्या है , तुम भी तो संयुक्त परिवार , भारतीय मूल्यों की बात करती हो। ”
“ पर मैंने यह कभी नहीं कहा कि आदमी सारी जिंदगी बच्चा बना रहे। ”
“ बच्चा ? जानती हो ऑफिस में मेरी कितनी इज्जत है। ”
“ वो मेँ नहीं जानती , पर घर मेँ तुम बच्चे हो , और मैं बच्चे के साथ नहीं जीना चाहती। ”

कहकर वो घर से बाहर निकल गईं।

माँ को पता चला तो वह उसे ढूंढ़ने कार लेकर निकली , उन्हें यकीं था वो ज्यादा दूर नहीं गईं होगी।

मोड़ पर उन्हें वो तेज तेज कदमों से चलती दिखाई दी।
उसके पास जाकर कार रोककर कहा , “ बैठो। ”
विभूति आज्ञाकारी बच्चे की तरह बैठ गईं।
“ नाराज हो मुझसे ?” माँ ने पूछा।
“ हाँ। ”
“ तुम चाहो तो मैं अलग रह सकती हूँ। ”
“ उससे क्या होगा, अलग रहने से निर्णय लेने आते होते तो अब तक सीख चुका होता। ”
“ तो मुझसे क्यों नाराज हो?
” आपने उसे फैसला लेना नहीं सिखाया। ”
” तुम्हें तुम्हारी माँ ने सिखाया था ? …नहीं न? …फिर तुमने कैसे सीखा ?”
विभूति चुप हो गईं।

” कॉफ़ी ? ” माँ ने रेस्टोरेंट के सामने कार रोकते हुए पूछा।

” श्योर , विभूति ने मुस्कराते हुए कहा।
दोनों बैठ गईं तो माँ ने आर्डर दिया “ दो चीज़ सैंडविच , दो रागरपेटीएस, दो रसमलाई और दो कॉफ़ी । ”
” इतना कौन खायेगा ?” विभूति ने कहा
” हम खाएंगे, चिंता हो तो सबसे पहले छक कर खाओ। ”

” अच्छा अब बताओ क्या किया जाए? ”
” मुझे क्या पता, आप माँ है , पर आप बताईये इतना इंटेलीजेंट लड़का, अगर अपने निर्णय का उतरदियत्व नहीं लेगा , तो क्या जीवन मेँ कभी भी बड़ा कदम उठा पाएगा ?”
” शादी का मतलब ही होता है एक दूसरे की कमियों को पूरा करना, यहां तुम अपने उतरदियत्व से नहीं भाग रही हो?”
” हो सकता है ।”
“ ऐसा ही है । यह ग़ुस्सा अचानक तो नहीं आया होगा , कब से उबल रहा होगा , ग़ुस्से को इतना दबाओगी , तो यही होगा ।”
“ जी ।”
“ जहाँ तक आदित्य का सवाल है मैं उसकी इस कमी को हमेशा से जानती आई हूँ , और सोचती हूँ वक्त और तुम उसे सिखा दोगे। ”
” जी। ” विभूति अब तक शांत हो गईं थी।

कॉफ़ी का घूँट लेते हुए माँ ने कहा, ” तीन साल का था, जब उसके पापा जाते रहे, तब से में खड़ी हूँ उसके जीवन में एक चट्टान की तरह, उसने मुझे सारी ज़िम्मेदारियों के साथ आगे बढ़ते देखा है , और वो मुझे एक स्टार समझता है , जिस दिन मेरी कमज़ोरियाँ समझ जायगी उस दिन अपने निर्णयों को शिखर तक ले जाना भी सीख जायगा, पर यह कब होगा , कैसे होगा , मुझे नहीं पता ।”

विभूति ने अपने दोनों हाथों से माँ के हाथ थाम लिये ।

“ इस पूरी दुनियाँ में मुझसा भाग्यशाली कोई नहीं , जो मुझे आप मिलीं, आदित्य मिला । आय लव यू बोथ ।”

“ माँ मुस्करा दी , और हाथ तपथपाते हूए कहा, “ मेरी प्यारी बच्ची ।”

——शशि महाजन

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